वाल्मीकि रामायण | Valmiki Raamayanama

वाल्मीकि रामायण : जीवानान्दा विद्यासागर | Valmiki Raamayanama : Jivaananda Vidyasaagara

वाल्मीकि रामायण : जीवानान्दा विद्यासागर | Valmiki Raamayanama : Jivaananda Vidyasaagara के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : वाल्मीकि रामायण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Jivaananda Vidyasagar | Jivaananda Vidyasagar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.6MB है | पुस्तक में कुल 46 पृष्ठ हैं |नीचे वाल्मीकि रामायण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वाल्मीकि रामायण पुस्तक की श्रेणियां हैं : hindu

Name of the Book is : Valmiki Raamayanama | This Book is written by Jivaananda Vidyasagar | To Read and Download More Books written by Jivaananda Vidyasagar in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.6MB | This Book has 46 Pages | The Download link of the book "Valmiki Raamayanama" is given above, you can downlaod Valmiki Raamayanama from the above link for free | Valmiki Raamayanama is posted under following categories hindu |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 1.6MB
कुल पृष्ठ : 46

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

अथ विष्णुमहातेजा अदित्या समजायत । | वामन रुपमा स्थाय वैरोचनिम पागमत ॥ ११ ॥ तीन पदानथ भित्तित्वा प्रतिग्टह्य च मेदिनीम् । आक्रम्य ते केल्लो कार्थी स वनोकहिते रतः ॥ २० ॥ महेन्द्राय पुनः प्रादात्रियम्य बलि मोजसा । त्रैलोक्य' स महातेजायक्रे शक्र वशं पुनः ॥ २१ ॥ तेनैव पूर्व माकान्त आयमः शमनाशनः । मयापि भत्त्या तस्यैव वामन स्य।पभुज्यते ॥ २ ॥ एनमा थम मायान्ति राक्षसा विघ्नकारि गाः ।। अत्र ते पुरुष व्याघ्र ! हन्तव्या दुष्टचारिगाः ॥ २३ ॥ अद्य गच्छाम है राम ! सिहाश्रममनुत्तमम् ।। तदाश्रमपदं तात ! तवा प्ये तद्यथा मम ॥ २४ ॥ इत्युक्वा परम प्रीतो ग्टह्य रामं सलचा गाम् । अधिगन्नाथमपदं व्यरोचत महामुनिः ।।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.