आर्यों का आदि देश – स्वामी विद्यानंद सरस्वती पुस्तक डाउनलोड | Aryo Ka Adi desh – Swami Vidhyanand Saraswati |

आर्यों का आदि देश – स्वामी विद्यानंद सरस्वती पुस्तक डाउनलोड | Aryo Ka Adi desh – Swami Vidhyanand Saraswati |

आर्यों का आदि देश – स्वामी विद्यानंद सरस्वती पुस्तक डाउनलोड | Aryo Ka Adi desh – Swami Vidhyanand Saraswati | के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : आर्यों का आदि देश है | इस पुस्तक के लेखक हैं : vidyanand saraswati | vidyanand saraswati की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3.54 MB है | पुस्तक में कुल 258 पृष्ठ हैं |नीचे आर्यों का आदि देश का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आर्यों का आदि देश पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, history, india, Uncategorized

Name of the Book is : Aryo Ka Adi desh | This Book is written by vidyanand saraswati | To Read and Download More Books written by vidyanand saraswati in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3.54 MB | This Book has 258 Pages | The Download link of the book "Aryo Ka Adi desh" is given above, you can downlaod Aryo Ka Adi desh from the above link for free | Aryo Ka Adi desh is posted under following categories dharm, hindu, history, india, Uncategorized |

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पुस्तक का साइज : 3.54 MB
कुल पृष्ठ : 258

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दे मे ऐसा सुना है कि एक विदानू ने कटा था--दाढसिद्धान्तस्तु थाक- प्द्धान्त पुव--याठ ( गज्नाघर तिंढऊ ) का सिद्धाम्त तो घाठकों का १ सिद्धान्त दे । यदि यद्द कथन सर्य भी हो सब भी दशास्ीय दंग से स्मीरता के साथ समीक्षा करनी थी--ेंस्सी उदाने से अपनी ही बात की पढ़ती है । इस पुस्तक में सुदे तिलक का कई अध्यायों में खण्डन धरना पढ़ा है । इसका तात्पर्य यह नहीं दै कि मैं उनके पाण्डित्य की रावरी करने का दुशसाइस करता हूँ । यदि उनके दी निर्दिट पथ का अनुसरण करके मैं उनसे भिन्न परिणाम पर पहुँचा हूँ सो इससे उनके पति को मेरी धद्धा दे उसमें कोई कमी नहीं होती । तिलक के थाद जिन भारतीयों भे इस म्रभ पर विचार किया है इनमें स्वर्गीय थदिनाशचन्द दास का नाम विशेष रूप से उस्टेण्य दै। हन्दोंने इस प्रादीन भारतीय मत का ही समर्थन किया है कि भार्य्य छोग भारत के दी निषासी थे । अपनी घुष्टि में उन्होंने भूगभ शाख्र के भनु- सन्धानों का अच्छा उपयोग किया है | प्रसज्तः उनको पाश्चात्य दिद्वानों और तिछक का भी खण्डन करना पदा है । ।.. दास के इस भनुशोठन का भारतीय विशेषतः पण्डित समाभ में शो समादर दोना चादिये था घद न हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि चहीं कोई इस मश् के सदस्व को समझता ही नहीं । पाश्नात्य दिद्वाने ने इसका मकृष्या विरोध किया । सुझे प्रकृत्या कदते क्ोभ दोता दै पर विषय ोकर ऐसा करता हूँ । थद्द एक कट सत्य है। विद्रन्मण्डली में मी कई रूदियों का दुर्मेच भाधिपत्य है । इन्हीं सदियों में थदद भी है कि बा्य्य॑ छोग भारत के बद्दर से आकर यहाँ थसे । दूसरी रूढ़ि थो इतनी ही मबरू है यदद है कि भारतीय सम्यता मिश्र था दराफ़ की पुरानी सम्यता्ं की अपेक्षा पीछे की दे । इन रूदियों के विरंद्ध कोई शक पश्चिमवाछं के भन में कम दो जमता है। शायद छोग भारत के निवासी थे ऐसा मानने में तो उन्हें और भी कठिनाई पढ़ती है। सैरदों वर्षों के सांस्कतिक और राजनीतिक सूद सो अन्तःकरण के अन्स- स्तर में डिपे पढ़े हैं ऐसा मानने से रोक्ते हैं । थदि यदद बातें भौतिक विज्ञान से सम्बन्ध रखती हो भाक्षेप करने धाला प्रत्यक्ष मरयोग द्वःरा निरुत्तर किया था सकता था परन्तु प्राचीन इतिदास के क्षेत्रों में झा थूरोप के दि्वानों ने अपना कुछ मत बना ढिया है किसी भारतीय का बणके चिधद अरूकर मान्यता प्राप्त करना इस समय तक असम्मंतर भहीं हो कटिन अवइय रहा दे।

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