रोमां रोला : रामकृष्ण परमहंस | Roma Rolla : Ramkrishna Paramhans के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : रोमां रोला है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ramkrishna | Ramkrishna की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Ramkrishna | इस पुस्तक का कुल साइज 10.1 MB है | पुस्तक में कुल 306 पृष्ठ हैं |नीचे रोमां रोला का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | रोमां रोला पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography
Name of the Book is : Roma Rolla | This Book is written by Ramkrishna | To Read and Download More Books written by Ramkrishna in Hindi, Please Click : Ramkrishna | The size of this book is 10.1 MB | This Book has 306 Pages | The Download link of the book "Roma Rolla" is given above, you can downlaod Roma Rolla from the above link for free | Roma Rolla is posted under following categories Biography |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
'ज्ञानी के चरणो मे मेरा प्रणाम है, भक्त के चरणो में प्रणाम है, साकारवादी भत व निराकारवादी मत, दोनो के चरणो मे प्रणाम है, पुरातन ब्रह्म| ज्ञानियो के चरणो मे प्रणाम है, इदानीतन सत्यज्ञानियो के चरणो में प्रणाम है । (रामकृष्ण, २८ अक्टूबर १८८२) यदि मुझसे प्रमादवश कोई भूल हो गई हो, तो भारतीय पाठकगण से मेरा हादिक अनुरोध है कि वे उसकी उपेक्षा करेंगे । इस गुरु दायित्व को वहन करने के लिए मैंने अकृठित भाव से कठोर परिश्रम किया है । परन्तु ऐसा होने पर भी भारतवर्ष की अनेक सहस्र वर्ष प्राचीन विचारबारा की सर्वथा सही अथों में व्याख्या कर सकना एक योरोपवासी के लिए समव नही है। कारण, इस प्रकार की व्याख्या, प्राय. भ्रमात्मक हो सकती है। तथापि एक बात मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हैं, कि जीवन की विभिन्न प्रकार की समस्याओं के बीच प्रवेश करने के लिए मैंने विशुद्ध व विनयावनत चित्त के साथ जो प्रयास किया है, उसमे किसी प्रकार के कपट व कृत्रिमता का लेश नही है । इसके साथ ही मैं यह स्वीकार करता हैं केि पश्चिमी देशवासी होने के कारण, जिस स्वतन्त्र विचार-बुद्धि का मेरे अन्दर जन्म हुआ है, उसका भी मैंने कणमात्र परित्याग नही किया है । सभी के विश्वासो के प्रति मैं श्रद्धा रखता हैं, और प्राय: मैं उनको प्यार भी करता हैं। किन्तु, में कभी भी उन्हे अपना मत नही कह सकता । श्रीरामकृष्ण को अपना अन्तरग अनुभव करता हैं। इसका कारण यह नही है कि उनके शिष्यो के समान मैं भी उन्हे मगवान् का अवतार समझता है । उसका कारण यह है कि मैं उनके अन्दर मनुष्य का दर्शन करता हैं। वेदान्तियो के समान, आत्मा मे भगवान वास करते हैं, और आत्मा सर्वत्र
Dear Pritamji, Thanks to upload RKP biography but on black pg white text stressful to read book with cell. So plz make it normal as white pg & black text. Plz inform book stall or publication cell or email to demand hard copy. Thanks & Regards – Dr.Suhas
Thanks for this issue Dr.. I have done this to reduce the pdf size.I have the "Black Text on White Page" version , I would upload that if u like , Please Reply……
If u like my effort , dont forgot to share …
Thanks Again
Hi
Is this pdf file still available?
Thanks
Yes It Is