कला और मानव : बाल सीताराम मर्ढेकर हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Kala Aur Manav : Bal Sitram Mardhekar Hindi Book Free PDF Download

कला और मानव : बाल सीताराम मर्ढेकर | Kala Aur Manav : Bal Sitram Mardhekar

कला और मानव : बाल सीताराम मर्ढेकर | Kala Aur Manav : Bal Sitram Mardhekar

कला और मानव : बाल सीताराम मर्ढेकर | Kala Aur Manav : Bal Sitram Mardhekar के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कला और मानव है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bal Sitaram Mardhekar | Bal Sitaram Mardhekar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 2 MB है | पुस्तक में कुल 89 पृष्ठ हैं |नीचे कला और मानव का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कला और मानव पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, Knowledge, world

Name of the Book is : Kala Aur Manav | This Book is written by Bal Sitaram Mardhekar | To Read and Download More Books written by Bal Sitaram Mardhekar in Hindi, Please Click : | The size of this book is 2 MB | This Book has 89 Pages | The Download link of the book "Kala Aur Manav" is given above, you can downlaod Kala Aur Manav from the above link for free | Kala Aur Manav is posted under following categories history, Knowledge, world |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 2 MB
कुल पृष्ठ : 89

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मेरी अायु बढ़ती गई, वस्तुओं में नेत्रों को यह अवर्णनीय आनन्द, लवलीन करने वाली चाक्षुष कल्पनाओं का मोहक सौंदर्य और आश्चर्य, चित्रकला के लिए प्रेम में परिणत होगया । फिर उसके बाद अन्तद्वंद्व, शंका और संभ्रम का जमाना शुरू हुआ और मैंने यह अनुभव किया कि सौंदर्य निष्ठ दश्यों के प्रति मेरी सौंदर्यनिष्ठ प्रतिक्रिया उन लोगों की प्रतिक्रिया से जिन्होंने विद्यालयों में कला का प्रयोग और अभिमूल्यन सीखा था, तथा उनका अनुकरण करने वाले अधिकांश लोगों की प्रतिक्रिया : से विभिन्न थी । वह ऐसे चित्रों की श्लाघा करते थे जिनमें श्लाघा करने योग्य मुझे कुछ नहीं दीख पड़ता था, और जो चित्र मुझे प्रत्यक्षतया बिल्कुल तन्मय कर
देने वाले मालूम होते थे उनको प्रभावित नहीं कर पाते थे । यदि हम ' एक ही चित्र की श्लाघा करते थे तो हमारे ऐसा करने का कारण बहुत कम एक ही होता था। मैं पहले तो घबरा गया। फिर मुझे अपने पर शर्म आने लग गई और मैं पाखण्ड का शिकार हो गया, यानी झूठ बोलने लग गया।

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