हिन्दी की आत्मा : डॉ धर्मवीर | Hindi Ki Atma : Dr Dharmaveer के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : हिन्दी की आत्मा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dharmveer Bharti | Dharmveer Bharti की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Dharmveer Bharti | इस पुस्तक का कुल साइज 99 MB है | पुस्तक में कुल 410 पृष्ठ हैं |नीचे हिन्दी की आत्मा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | हिन्दी की आत्मा पुस्तक की श्रेणियां हैं : india, Knowledge
Name of the Book is : Hindi Ki Atma | This Book is written by Dharmveer Bharti | To Read and Download More Books written by Dharmveer Bharti in Hindi, Please Click : Dharmveer Bharti | The size of this book is 99 MB | This Book has 410 Pages | The Download link of the book "Hindi Ki Atma" is given above, you can downlaod Hindi Ki Atma from the above link for free | Hindi Ki Atma is posted under following categories india, Knowledge |
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हिन्दी की मात्मा
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मुझे अपने भारत के उप राष्ट्र पति महामहिम डॉ० शंकर याल शर्मा से कई बार उनके विचार सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं नई दिल्ली में उप राष्ट्र पति निवास में भी कई वैचारिक और साहित्यिक संगोष्ठियों में सम्मिलित हुआ हैं। अपनों जन्न को देख कर मुझे उनकी हर बात ऐसी लगती है मानो मेरे दादा मुझे इस देश की गहरी समझ दारी की बातें समझा रहे हों। इस बार उन्होंने अपने निवास पर एक भेट में समझाया कि प्राचीन काल में इस देश की जो कमजोरियो चली आ रहीं हैं उन्हें समाज के सामने रखने में कोई हर्ज नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि पुराने जाति चादी बाह्मणों ने पिछले हजारों वर्षों से शूटों और आम जनता के साथ बुरा किया है। आज के विद्वानों और साहित्य कारों को अपना नैतिक दायित्व मान कर यह बात प्रभावी ढंग से सबके सामने रखनी चाहिए। तभी मुझे याद आया कि हमारे संविधान ने सिद्धांत और कानून के रूप में अपने 17 वे अनुच्छेद के द्वारा अस्पृश्यता को नाश कर दिया है। अब समय आ गया है कि अस्पृश्यता के भाषाई कारणों को भी, बति में कोई हों, दफनाने की रस्म पूरी कर ली जाए । संस्कृत का नाम लेते ही शूद्र समुदाय का इर सन्चा हो जाता है। मैं दिल से चाहता हैं कि कोई भाषा विद मेरे लिए यह सिद्ध कर दे कि अपनी बनावट में संस्कृत शूद्र विरोधी भाषा नहीं है।
इस देश में किसी भी लोभ के कारण या मजबूरी से दो तरह की हिन्दी विकसित नहीं की जानी है । संविधान की आठवीं अनुसूची के हिन्दी भाषी लोग अपनी हिन्दी संविधान के अनुच्छेद 351 की हिन्दी से भिन्न नहीं रखेगे । हिन्दी सर्वत्र एक रहेगी । ऐसा नहीं होगा कि आठवीं अनुसूची की हिन्दी एक दिशा में चलेगी और अनुच्छेद 351 की हिन्दी दूसरी दिशा में चलेगी ।
कई लोगों को यह महसूस हुआ है कि उन्होंने वर्षों तक राज काज में हिन्दी के नाम पर कोरी संस्कृत सी लिख कर हिन्दी के साथ अन्याय किया है। उन्होंने यह भी माना है कि अंग्रेजों से हिन्दी के अनुसाद ने हिन्दी के स्वभाव को बिगाड़ कर रख दिया है । अब संविधान के लागू होने के चौथे दशक में यह उपयुक्त समय है कि राज भाषा हिन्दी में अब तक जो कुछ किया जा चुका है, हिन्दी भाषा की जीनियस के संदर्भ में उसका एक सम्यक पुनर्मूल्यांकन किया जाए।
इस पुस्तक में हिन्दी को ले कर अंग्रेजी और फारसी की तुलना में संस्कृत की कुस अधिक चर्चा हो गई है। ऐसा जान बूझ कर नहीं किया गया है बल्कि यह चर्चा समस्या के अनुरूप अपने आप हो गई है। मेरा विचार है, अव हिन्दी को अंग्रेजी भाषा से अटकारा मिल रहा है, लगे हाथों इसे फारसी की अतिशय दासता से और संस्कृत की अतिशय उदारता से भी छुटकारा प्राप्त कर लेना चाहिए । हिन्दी एक स्वतंत्र और आत्म निर्भर भाषा के रूप में सम्मान पूर्वक विकसित की जानी चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि सबसे पहले हिन्दी की जीनियस को जाना और माना जाए।