चन्दबरदाई की जीवनी : शांता सिंह मुफ्त डाउनलोड | Chandbardai Ki Jivni Biography : Shanta Singh Free Download के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : चन्दबरदाई की जीवनी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shanta Singh | Shanta Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shanta Singh | इस पुस्तक का कुल साइज 21.7 MB है | पुस्तक में कुल 470 पृष्ठ हैं |नीचे चन्दबरदाई की जीवनी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | चन्दबरदाई की जीवनी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, Uncategorized
Name of the Book is : Chandbardai Ki Jivni Biography | This Book is written by Shanta Singh | To Read and Download More Books written by Shanta Singh in Hindi, Please Click : Shanta Singh | The size of this book is 21.7 MB | This Book has 470 Pages | The Download link of the book "Chandbardai Ki Jivni Biography" is given above, you can downlaod Chandbardai Ki Jivni Biography from the above link for free | Chandbardai Ki Jivni Biography is posted under following categories Biography, Uncategorized |
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१३६ तपस्विनी के शाप से लोसलदेवज्ञी की खुद्धि का चल विचल हाना 0 पद9 १३८ प3€ १४० १४१९ पद १४३ पष४ प४प पद पे ४८ यार न ०० ०७ ७०७ ७७. प्रस्यान करना ॥ ७ ननन ना था नोसलदेध्रज्ञी को सांप का काठना शरीर उस से उन का मरना ॥ | बोसलदेवजी के मर्या श्रार श्रसुर हा नर भक्षण करने करी बात सुनकर सारंगदेवक्ञी का श्रपन क्षा रणधेभ भेजना श्र श्राप उनसे युद्ध करने का तसयार दाना ॥ सारंगदेवज्ञी की राणी गवरी -क्ा चिंता करना ॥ सारंगदेवजी का सेना लेकर छूंढा राचस से युद्ध क्रने का श्रज्मेर पर्ुंचना ॥ सारंगदेवज्ी का तीन दिन काट में रदना वहां श्रसुर का न मिलना श्रज्मेर को भ्रष्ट श्रार भय दशा देखकर चिंता करना ॥ . सारंगदेवज्ञी श्रीर उनके पिता कूंढा ठानव का परस्पर युद्ध होकर सारंगदेवज्ञी का मारा ढ०० ७ ं ही की के कक कथन कक कि 9०9 का | श्राना को मा का उसे करना कि मनुष्यों का कूंढ ५ क्र खाने से ढूंढा नाम पड़ा श्रार् उसने रम्य ्रज्ममेर क्षाग लेराम -कर दिया ॥ भ्राना वहा साता से कहना कि श्रभो जाकर मैं उसे मार भाऊं ॥ गवरी का आना के अमंतन मेत कहक्रर शिक्षा करना ॥... ... श्राना का माता से कहना कि या तो मैं सिर समप्रेंगा वा छत्र घारूंगा ॥ .. थे श्राना का माता से कहना कि सेवा ऐसी है कि जिस से सब क्रार्य सिद्धी होती है ॥ ... आना छो माता का ता उसे शत्रु न सेवने का कहना किन्तु उस का भ्रलमेर लाना. - ७७ कक कक्क कक ७ के गा बेब [ज यह ि सचौप । / द। को ि एप्ठ । ९९९ बोसल सरवर पर घ्लोसलदेवज्ञी के ्राधीन तथा -. +.... ... द्रके दिग्विलयाये ) ...... |... श्रठन के लिये एकत्र होना धार शुजरात चादु ० पी ना ध्रतएध वीसले 7 का उस पर चढ़ाई करना श्रार वालुक्नाराय क विजैपालजी का श्रार करने को श्राना॥ |... >>. १९१३ घालुक राव का श्राना सुनकर बीसलदेवली का शक... है. का ९९३ लोसलठेबज्ञो को खबर सुन बालुक राव का जता ० छुष्ा ॥ ...... .... .. कक नि गम १९४ घालुका राव का नित्य नेम करके लड़ने के तयारों प्रतिदिन बढ़ना कि दि न १९५ बाजुका राव का लोसलदेवली के पात्त श्रीकंठ भट्ट को मजा उ८सा कद्ना ॥ ्ग ली पे ९१९६ यह्द सुनते हो बीसलदेवजञी का लड़ने का श्राज्ा देना ॥ डा का प्र डी ही ९९७ छोसलदेवजी का चक्रष्यूद्द प्रार बालुकाराय का अ्टव्यद्द रचना ॥ थ सका 2 ९१८ लीसलदेवज्ञी और वालुकाराय की फोजो का परस्पर युद्ध करना ॥ दर है... ९१६ चालुक का कशना कि रात में छुदध नहीं करना प्रात भये युद्ध करेंगे ॥ मी | ९२० दोनां वोद्धाओं का अपने 3 डेसे पर श्राना श्रार चालुक के मंत्रियों का एक कूठी पत्नी बना ९०९ चालजुक के मंत्रियों का उसे एक भूठी पत्री देकर घर भेज देना ॥ भर ० १२३ चालुक् के मंत्रियों करा बीसलदेवज्ञा के संचरियां से मिल संधि कर लेना ॥.... द ९२३ पावासुर का लीोसलदेवजी का संधिकर लेने के समाचार कहना ॥ बन व 1 न ९०४ लोसलदेवज्ञी का संधि स्वीकार कर वद्ां महल बनाने शरीर नगर खसाने को कद्ना ॥.... ४ ९२५ साल मेंगा वर लोसलपुर बसाना श्रार वहां से पीछे फिरना ॥ झा र क ९०६ रक्क दूती का बोसलदेवज्ञो के शक बहुत सुन्दर बनिकसुता को खबर देना ॥ अली ९२७ बीसलदेवज्ञी का बोसलपुर में प्रविष्ठ दाना ॥ भार न न ही. वर ९२८ ल्लोसलदेवज्ञी का पीछे श्रज्मेर श्राना पार बच्चा उनका चास होना ॥.. सम है. ९२६ वबनिकसुता गेररो का पुष्कर में तप करना भ्राए बोसलदेबज्ञो का उस पर माहित होना ॥ ९३५० पुष्कर यही तपत्वनी की बीसलदेवली के प्रति श्वरदासि ॥. ..- कि न | ९६९ बीसलदेवज्ञी का पुष्कर में वनिकसुता गारी का सतीत्व भ्रष्ट करमा श्रार उसका उन का दा. ।. ने का शाप देना ॥ मय मर अम सफर 3 १४५ गेररी का बीसलदेवजी का भयभीत देखकर कदना कि तुम्ठारा पैसा तुम्हारी सुकीत्ति करे | १३३ तपस्विनी के काप से बोसलदेवज्ली का सांप के काटने से श्रलाप छाना ॥ की ९३४ जिस तपस्विनी के शाप से बीसलदेघली सुर चुए उस के तप का श्राना की मा सविस्तर घर्णन . . .... ९३५ शाप से थिमुक्त होने के विचार से लोसलदेवली बहा गाकण की यात्रा के लिये लोसल सरवर 1 बे ही पं दर थे 1 पं ९०४ श्् ड््हे ग्ण्धू पण्द्
Reality m ye gazab ki site h
Lekin isme kuchh kitabe download kyo nahi hoti h
please answer tell me