सिरिवालचरिउ | Siriwalchariyu के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : सिरिवालचरिउ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Devendra Kumar jain | Devendra Kumar jain की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Devendra Kumar jain | इस पुस्तक का कुल साइज 7.8 MB है | पुस्तक में कुल 182 पृष्ठ हैं |नीचे सिरिवालचरिउ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सिरिवालचरिउ पुस्तक की श्रेणियां हैं : history
Name of the Book is : Siriwalchariyu | This Book is written by Devendra Kumar jain | To Read and Download More Books written by Devendra Kumar jain in Hindi, Please Click : Devendra Kumar jain | The size of this book is 7.8 MB | This Book has 182 Pages | The Download link of the book "Siriwalchariyu" is given above, you can downlaod Siriwalchariyu from the above link for free | Siriwalchariyu is posted under following categories history |
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श्री पालचरितकी इस आकर्पकता और लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण है सिद्धचक्र विधानके द्वारा श्रीपालका आरोग्य लाभ । गृहस्थाश्रममें सुख-दुःख लगा ही रहता है । धार्मिक जनसमाज दुःखकी निवृत्तिके लिए धर्माचरणका भी आश्रय लेता है। सिद्धचक्र विधानके इस महत् फलने धार्मिक जनताको इस ओर आकृष्ट किया और इस तरह मैनासुन्दरीके साथ श्रीपालका चरित लोकप्रिय हो उठा नेमिदत्तने तो श्रीपालचरितको ‘सिद्धचक्रार्चनोत्तर्म' कहा हैं । श्रुतसागर सूरिने भी अन्तमें लिखा हैसिद्धचक्रव्रतसे अभ्युदय प्राप्त हुआ ।