वीर बुंदेले (भाग १) : प्रताप नारायण मिश्र | Veer Bundele (Part 1) : Pratap Narayan Mishra के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : वीर बुंदेले (भाग १) है | इस पुस्तक के लेखक हैं : pratap narayan mishra | pratap narayan mishra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : pratap narayan mishra | इस पुस्तक का कुल साइज 13.6 MB है | पुस्तक में कुल 98 पृष्ठ हैं |नीचे वीर बुंदेले (भाग १) का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वीर बुंदेले (भाग १) पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Veer Bundele (Part 1) | This Book is written by pratap narayan mishra | To Read and Download More Books written by pratap narayan mishra in Hindi, Please Click : pratap narayan mishra | The size of this book is 13.6 MB | This Book has 98 Pages | The Download link of the book "Veer Bundele (Part 1)" is given above, you can downlaod Veer Bundele (Part 1) from the above link for free | Veer Bundele (Part 1) is posted under following categories Biography, Stories, Novels & Plays |
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पर्वतीय और पठारी यह क्षेत्र, घने जंगलों,माइ - अंबाहों से आच्छादित था। यहां तक पहुंचने में उनने कई दिन लग गये थे। गिरि - कन्दराओं से बकर आने वाली नदियों के प्रवाह तो कभी - कभी इतने तीव्र हो जाते कि शायद अंगद के भी पैर इगमगा जाते। जरा भी चूके नहीं कि पता नहीं कहो पहुंच जाते? इट्टी पसली का भी पता न चलता। यमुना, बेतवा, चम्दल, टॉस, केन, घसान, सौन, कुंवारी, पज आदि नदियों से सारा अचल आप्लावित था।
"वत्स ! यहां का पठारी इलाका हमारे लिए बड़ा ही उपयोगी रहेगा। यह स्थान सुरक्षित है। विन्ध्य की इस घाटी में किसी भी बाहरी शक्ति का प्रवेश करना कठिन होगा। पर्वतों के बीच - बीच में अन्नादि उगाने के लिये पर्याप्त उपजाऊ भूमि भी है। जिधर मी दृष्टि घुमाओं सभी अपना है। अति सुनसान और निर्जन। जंगलों में बसे यहां के वासी बड़े ही मोने और सरल दीखते हैं। निश्छल और निष्कपट साफ हृदय के। इनके अन्तकरण को प्रेम और स्नेह से बड़ी सुगमता से जीता जा सकता है। यदि ये अपने बन गये तो इष्ट सापन में बड़े ही सहायक सिद्ध होंगे। एक इशारे पर कटने - मरने को सदा तत्पर रहेंगे। मुझे तो अब पूरा विश्वास हो चला है कि देवी मां की इम पर अवश्य ही कृपा होगी।" साथ में चल रहे बृद्ध ने युवक से कहा।
प्रत्युत्तर में युवक ने कहा, "दद्दा, हम हैं शस्त्र जीवी! खेती बाड़ी क्या जाने? कभी किया हो तभी तो, .....। सभी प्रकार के अस्त्र - शस्त्र अभी भी हमारे पास हैं। हम अपने बाहुबल से अपना खोया हुआ गौरव पुनः प्राप्त करेंगे। हमारे पास सेना थी। राज - पाट, सब कुछ तो था। म दुर्बल हो गये। इन वियर्मियों ने इमको - हमारे घर से ही खदेड़ बाहर किया।'' उसके एक - एक शब्द में प्रचंड आत्म विश्वास टपक रहा था।
उस काल की यह बात है। कन्नौज के मैदानी भाग में गहरबार राजपूतों का शासन था। उसकी एक शाखा काशी में भी पहुंची थी। सन् ६७४ में निगम के पुत्र कृर्तराज ने काशी को अपनी राजधानी बनाई। वह काशीश्वर कहलाता था। इसी की वीसवीं पी में करन पाल हुए थे। उसके पश्चात् वीरभद्। कन्नौज का अन्तिम सम्राट जयचन्द्र राठौड़ भी इसी वंश का