विराग | Virag के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : विराग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dhanya Kumar Jain | Dhanya Kumar Jain की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Dhanya Kumar Jain | इस पुस्तक का कुल साइज 1 MB है | पुस्तक में कुल 86 पृष्ठ हैं |नीचे विराग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | विराग पुस्तक की श्रेणियां हैं : Poetry
Name of the Book is : Virag | This Book is written by Dhanya Kumar Jain | To Read and Download More Books written by Dhanya Kumar Jain in Hindi, Please Click : Dhanya Kumar Jain | The size of this book is 1 MB | This Book has 86 Pages | The Download link of the book "Virag" is given above, you can downlaod Virag from the above link for free | Virag is posted under following categories Poetry |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
गृहिणी को गृह में लाकर , वे समझा करते चेरी जो उनकी हर परिचर्या में कभी न करती ढेरी| जग की इस दीन दशा से, दुख नित्य उन्हें हो आना पर जग में शांति-प्रतिष्ठा का कोई पथ न दिखता | जिस किसी भांति थे रहते कुर में यह आग छिपाये | प्राय: विचारते रहते थे नीचे नयन गड़ाये, इस चिर अशांति का जग से किस दिन विलोप यह होगा