चौसठ रूसी कवितायेँ : बच्चन हिंदी पुस्तक | 64 Roosi Kavitayein : Bachchan Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
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दढता हूँ अंग्रेजी जिसने द्वार विदव कविता के खोले आरती और अंगारे ब्रिटिश म्यूजियम में अंग्रेजों की विपुल अनुवाद-संपत्ति देखकर आइचयं- चकित रह जाना पड़ता है। अंग्रेज़ जाति के रुचि-वैविध्य ने न जाने कितनी भाषाओं की न जाने कितनी साहित्यिक निधियों को अंग्रेज़ी के भंडार में सुंचित ₹र दिया है । रूसी कविताओं का रसास्वादन भी मैंने अग्रेली अनु- वादों के द्वारा किया । इनका हिंदी रूपांतर वस्तुतः हिंदी अनुवाद-दर- अनुवाद कहा जाना चाहिए--रूसी का अंग्रेज़ी में अंग्रेज़ी का हिंदी में । अपने विदवविद्यालय-जीवन में रूसी कविता की ओर मेरा ध्यान नहीं गया । जहाँ तक मुक्त याद है उन दिनों इलाहाबाद के विददविद्यालय-पुस्त- कालय और पब्लिक लाइब्रेरी में रूसी कविताओं का कोई अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्ध नहीं था । उन दिनों हमारे विशेष आकर्षण के केंद्र थे रूसी उप- न्यासकार तुर्गनेव दस्तायेव्स्की तोल्सतोय बाद को चेखोव और गोर्की । पब्लिक लाइब्रेरी से लेकर जार और ज़ारीना के पत्रों का एक संकलन मैंने अवद्य पढ़ा था जिसमें उनके धमंगुरु और सित्र रासपुतीन का जिक्र बार-बार आता था। उस विचित्र व्यक्तित्व पर मैंने एक बड़ी पुस्तक बाद को पढ़ी । उन्हीं दिनों तुर्गनेव लिखित गद्यकाव्य जैसी कोई चीज़ पढ़ने की भी स्मृति है पर काव्य के नाम से मैंने रूस का कुछ भी नहीं पढ़ा था । प्रगतिवादी आंदोलन के दिनों में रूस और उसके साहित्य का जिक्र बार-बार किया जाता था पर साहित्यकार के नाम पर केवल उपन्यासकार गोर्की का नाम लिया जाता था--किसी कवि का नाम नहीं सुनाई पड़ता था । बाद को मयाकोव्स्की पर एक किताब अंग्रेज़ी में निकली । यह पाँचवें दददक के प्रारंभिक वर्षों की वात है। मैं इलाहाबाद युनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी अध्यापक के रूप में नियुक्त हो गया था । हमारे सहयोगी प्रगतिशील श्री प्रकाशचंद्र गुप्त ने संभवत उसी पुस्तक के आधार पर मयाकोव्स्की पर एक लेख भी पढ़ा था । पुस्तक में मयाकोव्स्की की कई कविताओं के अंग्रेज़ी अनुवाद भी थे। कवि में प्रखरता तो थी पर दिव्यता कहीं नहीं । विशेष य्