आँगन के कर द्वार | Aagan Ke Kar Dwar

आँगन के कर द्वार | Aagan Ke Kar Dwar

आँगन के कर द्वार | Aagan Ke Kar Dwar के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : आँगन के कर द्वार है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' | Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 0.45 MB है | पुस्तक में कुल 82 पृष्ठ हैं |नीचे आँगन के कर द्वार का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आँगन के कर द्वार पुस्तक की श्रेणियां हैं : Poetry, dharm, education

Name of the Book is : Aagan Ke Kar Dwar | This Book is written by Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' | To Read and Download More Books written by Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' in Hindi, Please Click : | The size of this book is 0.45 MB | This Book has 82 Pages | The Download link of the book "Aagan Ke Kar Dwar" is given above, you can downlaod Aagan Ke Kar Dwar from the above link for free | Aagan Ke Kar Dwar is posted under following categories Poetry, dharm, education |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 0.45 MB
कुल पृष्ठ : 82

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बना दे, चितेरे, मेरे लिए एक चित्र बना दे। पहले सागर क : विस्तीर्ण प्रगाढ़ नीला, ऊपर हुलचल से भरा, पवन के थपेड़ों से आहत, शत-शत तरंगों से उद्वेलित, फेनोमियों से टूटा हुआ, किन्तु प्रत्येक टूटने में अपार शोभा लिये हुए, चंचल, उत्सृष्ट, -जैसे जीवन । हो, पहले सागर आंक : नीचे अगाध, अथाह, असंख्य दबावों, तनावों, खींचों और मरोड़ों को अपनी द्रव एकरूपता में समेटे हुए, असंख्य गतियों और प्रवाहों को अपने अखण्ड स्थैर्य में समाहित किये हुए, स्वायत्त, अचंचल, जैसे जीवन सागर आँक कर फिर आँक एक उछली हुई मछली : ऊपर अधर में

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