आंखन देखी | Aankhan Dekhi के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : आंखन देखी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Durgaprasad Agrawal | Durgaprasad Agrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Durgaprasad Agrawal | इस पुस्तक का कुल साइज 6 MB है | पुस्तक में कुल 128 पृष्ठ हैं |नीचे आंखन देखी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आंखन देखी पुस्तक की श्रेणियां हैं : health, inspirational, Knowledge
Name of the Book is : Aankhan Dekhi | This Book is written by Durgaprasad Agrawal | To Read and Download More Books written by Durgaprasad Agrawal in Hindi, Please Click : Durgaprasad Agrawal | The size of this book is 6 MB | This Book has 128 Pages | The Download link of the book "Aankhan Dekhi" is given above, you can downlaod Aankhan Dekhi from the above link for free | Aankhan Dekhi is posted under following categories health, inspirational, Knowledge |
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यार ! सच तो यह है....
हिन्दी में जो विधाएं अपेक्षाकृत कम समृद्ध हैं उनमें से एक है यात्रा-वृत्तांत. बावजूद इस बात के कि पिछले कुछ वर्षों में अनेक कारणों से लोगों का देश-विदेश भ्रमण बढ़ा है, हिन्दी में इस विधा में उतना नहीं लिखा गया. कम से कम मुझे तो इस प्रतीति से खुशी नहीं होती कि चालीसेक साल पहले की चौड़ों पर चांदनी' (निर्मल वर्मा), 'अरे यायावर रहेगा याद', 'एक बूंद सहसा उछली' (दोन- अज्ञेय), 'आखिरी चट्टान तक' (मोहन राकेश)
और हरी घाटी' (रघुवंश) ही अब तक भी इस विधा की शीर्षस्थ कृतियां हैं. ऐसा नहीं है। कि इस बीच कुछ भी नहीं लिखा गया है. लोगों ने पारिवारिक अथवा महिला पत्रिकाओं के उपयुक्त यात्रा-वृतांत खूब लिखे, जिनकी अपनी उपादेयता है. कृष्णनाथ के यात्रा वृतांतों का अपना एक अलग स्याद रहा, तो अमृतलाल वेगड़ ने अपने लेखों से अपने परिवेश को अमरत्व प्रदान किया, मंगलेश डबराल ने आयोवा के संस्मरण लिख । कर बुद्धिजीवी पाठक को तृप्त किया. इस सूची में और भी बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है. बावजूद इसके दुखद स्थिति यह है कि हिन्दी में यात्रा वृत्तांत विधा समृद्ध नहीं है. बकौल ललित सुरजन "एक दर्जन पुस्तकें हैं. उनका ही नाम बारबार लेते रहिये." इन दर्जन भर पुस्तकों में देशी और विदेशी दोनों यात्राओं के वृत्तांत शरीक हैं. मुझे लगता है कि संचार माध्यम के द्रुत विकास के कारण परदेस भी अब उतना परदेस नहीं रह गया है. हर दूसरी फिल्म और चौथे सीरियल की लोकेशन कोई न कोई परदेस ही है. परिणाम यह कि आप चाहे बंगलूर में रहने वाले अमीर हों या छिन्दवाड़ा में रहने वाले किसान, परदेस अब आपके लिए बहुत अनजाना नहीं रह गया है.