गुनाहों का देवता | Gunahon Ka Devta

गुनाहों का देवता : धर्मवीर भारती हिंदी पुस्तक | Gunahon Ka Devta : Dharmveer Bharti Hindi Book

गुनाहों का देवता : धर्मवीर भारती हिंदी पुस्तक | Gunahon Ka Devta : Dharmveer Bharti Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : गुनाहों का देवता है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dharmveer Bharti | Dharmveer Bharti की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 2.49 MB है | पुस्तक में कुल 214 पृष्ठ हैं |नीचे गुनाहों का देवता का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | गुनाहों का देवता पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Gunahon Ka Devta | This Book is written by Dharmveer Bharti | To Read and Download More Books written by Dharmveer Bharti in Hindi, Please Click : | The size of this book is 2.49 MB | This Book has 214 Pages | The Download link of the book "Gunahon Ka Devta" is given above, you can downlaod Gunahon Ka Devta from the above link for free | Gunahon Ka Devta is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 2.49 MB
कुल पृष्ठ : 214

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चलो अनदर चलो। चनदर ने कहा। वह आगे बढ़ी फिर ठिठक गयी और बोली चनदर एक आदमी को चार किताबें मिलती हैं? हाँ कयों? तो...तो... उसने बड़े भोलेपन से मुसकराते हुए कहा तो तुम अपने नाम से मेमबर बन जाओ और दो किताबें हमें दे दिया करना बस जयादा का हम कया करेंगे? नहीं चनदर हँसा तुमहारा तो दिमाग खराब है। खुद कयों नहीं बनतीं मेमबर? नहीं हमें शरम लगती है तुम बन जाओ मेमबर हमारी जगह पर। पगली कहीं की चनदर ने उसका कनधा पकडक़र आगे ले चलते हुए कहा वाह रे शरम अभी कल बयाह होगा तो कहना हमारी जगह तुम बैठ जाओ चनदर कॉलेज में पहुँच गयी लड़की अभी शरम नहीं छूटी इसकी चल अनदर और वह हिचकती ठिठकती झेंपती और मुड-मुडक़र चनदर की ओर रूठी हुई निगाहों से देखती हुई अनदर चली गयी। थोड़ी देर बाद सुधा चार किताबें लादे हुए निकली। कपूर ने कहा लाओ मैं ले लूँ तो बाँस की पतली टहनी की तरह लहराकर बोली सदसय मैं हूँ। तुमहें कयों दूँ किताबें? और जाकर कार के अनदर किताबें पटक दीं। फिर बोली आओ बैठो चनदर मैं अब घर जाऊँगा। ऊँहूँ यह देखो और उसने भीतर से कागजों का एक बंडल निकाला और बोली देखो यह पापा ने तुमहारे लिए दिया है। लखनऊ में कॉनफरेनस है न। वहीं पढने के लिए यह निबनध लिखा है उनहोंने। शाम तक यह टाइप हो जाना चाहिए। जहाँ संखयाएँ हैं वहाँ खुद आपको बैठकर बोलना होगा। और पापा सुबह से ही कहीं गये हैं। समझे जनाब उसने बिलकुल अलहड़ बचचों की तरह गरदन हिलाकर शोख सवरों में कहा। कपूर ने बंडल ले लिया और कुछ सोचता हुआ बोला लेकिन डॉकटर साहब का हसतलेख इतने पृषठ शाम तक कौन टाइप कर देगा? इसका भी इनतजाम है और अपने बलाउज में से एक पतर निकालकर चनदर के हाथ में देती हुई बोली यह कोई पापा की पुरानी ईसाई छातरा है। टाइपिसट। इसके घर मैं तुमहें पहुँचाये देती हूँ। मुकरजी रोड पर रहती है यह। उसी के यहाँ टाइप करवा लेना और यह खत उसे दे देना। लेकिन अभी मैंने चाय नहीं पी। समझ गये अब तुम सोच रहे होगे कि इसी बहाने सुधा तुमहें चाय भी पिला देगी। सो मेरा काम नहीं है जो मैं चाय पिलाऊँ? पापा का काम है यह चलो आओ

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1 Comment
  1. Mraikwar says

    That is my one of the most favorite writer I read his two Noble and both are just awesome…I love it

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