मआसिरुल उमरा ( मुग़ल दरबार के हिंदू सरदारों की जीवनी ) पीडीऍफ़ पुस्तक डाउनलोड | Maasirul Umra ( Mughal Darbar Ke Hindu Sardaro Ki Jivni) PDF के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : मआसिरुल उमरा ( मुग़ल दरबार के हिंदू सरदारों की जीवनी ) है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Brij Ratna Das | Brij Ratna Das की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Brij Ratna Das | इस पुस्तक का कुल साइज 14.07 MB है | पुस्तक में कुल 642 पृष्ठ हैं |नीचे मआसिरुल उमरा ( मुग़ल दरबार के हिंदू सरदारों की जीवनी ) का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मआसिरुल उमरा ( मुग़ल दरबार के हिंदू सरदारों की जीवनी ) पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, history, india, Knowledge, Uncategorized
Name of the Book is : Maasirul Umra ( Mughal Darbar Ke Hindu Sardaro Ki Jivni) | This Book is written by Brij Ratna Das | To Read and Download More Books written by Brij Ratna Das in Hindi, Please Click : Brij Ratna Das | The size of this book is 14.07 MB | This Book has 642 Pages | The Download link of the book "Maasirul Umra ( Mughal Darbar Ke Hindu Sardaro Ki Jivni)" is given above, you can downlaod Maasirul Umra ( Mughal Darbar Ke Hindu Sardaro Ki Jivni) from the above link for free | Maasirul Umra ( Mughal Darbar Ke Hindu Sardaro Ki Jivni) is posted under following categories Biography, history, india, Knowledge, Uncategorized |
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निवेदन इस ग्रंथ के प्रथम भाग में इस ग्रंथ का परिचय दिया जा चुका है सर उक्त भाग की भूमिका में प्रायः चालीस प्रष्ठों में सुग़ल-राज्य-संस्था- पन से पानीपत के तृतीय युद्ध तक का संक्षिप्त इतिहास भी सम्मिठित कर दिया गया है जिससे एक एक सर्दार की जीवनी पढ़ने पर यदि कोई घटना अश्॑ंखढित-सी मादम पड़े तो उसकी सहायता से इसकी श्ंखला ठीक जात हो सकेगी । इस भाग में एक सौ चौबन सर्दारों की जीवनियाँ संग्रहीत हैं । थे हिंदी अक्षरानुक्रम से रखी जा रही हैं और इस भाग में केवल स्वर से आरंभ नाम वालों ही की जीवनियाँ संकलित हुईं हैं। इनमें सुऱल-साम्राज्य के प्रधान मंत्री प्रसिद्ध सेनापति प्रांताध्यक्ष आदि सभी हैं जिनके वंश-परिचय प्रकृति स्वतः उन्नयन के प्रयत्न आदि का वह विवरण मिलता है जो बड़े से बड़े भारत के इतिहास में प्राप्त नहीं है तथा जिससे पाठकों का बहुत सा कौतूहल शांत होता है । यह ग्रंथ भारत-विषयक इतिहास-संबंधी फारसी या अरबी ग्रंथों में अद्वितीय है और विस्तृत विवेचन करते हुए भी बड़ी छान-बीन के साथ लिखा गया है । इसके अनुवाद का श्रीगणेश प्रायः सोलह वर्ष हुए तभी हो चुका था और सं० १६८६ बि० में इसका प्रथम भाग किसी भ किसी प्रकार प्रकाशित हो गया था । समय की कमी से अनुवाद करने में तथा प्रकादाक की ढिलाई से दूसरे भाग के प्रकादान में भी सात आठ वर्ष लग गए. । इस भाग में टिप्पणियाँ कम हैं तथा बहुत आवश्यक समझी जाने पर दी गई हैं । इसका कारणदो है । एक तो श्रंथ यों ही बहुत बड़ा है उसे और विशद बनाना ठीक नहदीं है और दूसरे उसकी विद्वद्ता के कारण ही विद्येघ टिप्पणियो की आवइयकता नहीं पड़ी है । अस्तु यह भ्रंथ इस रूप में इतिहास प्रेमी पाठकों के सम्सुख उपस्थित किया जाता है विजयादशमी बिनीत-- १६६५ त्रज्नरन्नदास ।