राजपूताने के जैनवीर | Rajputane Ke Jain Veer

राजपूताने के जैनवीर | Rajputane Ke Jain Veer

राजपूताने के जैनवीर | Rajputane Ke Jain Veer

राजपूताने के जैनवीर | Rajputane Ke Jain Veer के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : राजपूताने के जैनवीर है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ayodhya Prasad Goyaliya | Ayodhya Prasad Goyaliya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 10.0 MB है | पुस्तक में कुल 378 पृष्ठ हैं |नीचे राजपूताने के जैनवीर का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | राजपूताने के जैनवीर पुस्तक की श्रेणियां हैं : history

Name of the Book is : Rajputane Ke Jain Veer | This Book is written by Ayodhya Prasad Goyaliya | To Read and Download More Books written by Ayodhya Prasad Goyaliya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 10.0 MB | This Book has 378 Pages | The Download link of the book "Rajputane Ke Jain Veer " is given above, you can downlaod Rajputane Ke Jain Veer from the above link for free | Rajputane Ke Jain Veer is posted under following categories history |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 10.0 MB
कुल पृष्ठ : 378

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यह इतिहास-प्रसिद्ध दुर्ग भारत के ही नही वरन् समस्त संसार के किलों मे शिरमौर है । इसी किले के लिये यह कहावत प्रसिद्ध है कि-"गढ़ तो चित्तौड़गढ़ और सब गया है। यह दुर्ग अपनी सुन्दरता अथवा मजबूती के कारण विख्यात् नही है। सुन्दरता और मजबूती मे तो यह किला शायद संसार के किलो की श्रेणी में भी न रखा जा सके, और अब तो यह खण्डहर हो गया है । रसिक यात्रियो के मनोरंजन के लिये यहाँ कुछ भी शेष नहीं है । पर जो स्वतन्त्रता के उपासक हैं, उनका यह महान् तीर्थ है, इसका प्रत्येक अणु उनका देवता है, इसकी रज को मस्तक पर लगाने से बह कृत्य होजाते है और इसकी गौरवाथिा सुनतेर उन्मत्त हो नाचने लगते हैं अथवा सर धुन कर रोने लगते हैं।

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