आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना | Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना | Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना | Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dr. Ramvilas Sharma | Dr. Ramvilas Sharma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 9.03 MB है | पुस्तक में कुल 240 पृष्ठ हैं |नीचे आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना पुस्तक की श्रेणियां हैं : literature

Name of the Book is : Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna | This Book is written by Dr. Ramvilas Sharma | To Read and Download More Books written by Dr. Ramvilas Sharma in Hindi, Please Click : | The size of this book is 9.03 MB | This Book has 240 Pages | The Download link of the book " Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna" is given above, you can downlaod Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna from the above link for free | Acharya Ramchandra Shukla Or Hindi Alochna is posted under following categories literature |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 9.03 MB
कुल पृष्ठ : 240

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

शुक्लजी ने उन पच्छिमी मनोवैज्ञानिकों का खंडन किया है जो मनुष्य | की निःस्वार्थ भावना में विश्वास नहीं करते, जो सच्चे देशभक्तों और क्रान्तिकारियों में भी छिपी हुई स्वार्थभावना ढूंढ़ निकालते हैं । इस घटिया मनोविज्ञान को माक्र्सवाद का नाम देते हुए यशपाल ने लिखा है, मनुष्य चाहे अपने परिश्रम से कमाया धन दे दे या अपनी जान दे दे, सब कुछ अपने संतोष के लिये ही है । इसीलिये कुछ लोग अपने संतोष के लिये साहित्य का व्यापार करते हैं, चीरहरण की चर्चा से बिकाऊ माल तैयार करते हैं और पैसे के अलावा जनता के सेवक होने का यशलाभ करते हैं । यशपालजी के आत्मविश्वास से ईष्र्या होती है। क्या दो टूक बात लिखी है, ८८माक्र्सवाद कहता है-न्याय और परोपकार में भी स्वार्थ की भावना रहती। है । इसे संबन्ध में यशपाल जी को नहीं तो साधारण हिन्दी पाठकों को शुक्लजी में बहुत कुछ सोचने की सामग्री मिलेगी।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.