अर्थशास्त्र शब्द-कोष | Arthshastra Shabd-Kosh

अर्थशास्त्र शब्द-कोष | Arthshastra Shabd-Kosh

अर्थशास्त्र शब्द-कोष | Arthshastra Shabd-Kosh के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अर्थशास्त्र शब्द-कोष है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Acharya Raghuvir Prasad Trivedi | Acharya Raghuvir Prasad Trivedi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 21.38 MB है | पुस्तक में कुल 261 पृष्ठ हैं |नीचे अर्थशास्त्र शब्द-कोष का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अर्थशास्त्र शब्द-कोष पुस्तक की श्रेणियां हैं : education

Name of the Book is : Arthshastra Shabd-Kosh | This Book is written by Acharya Raghuvir Prasad Trivedi | To Read and Download More Books written by Acharya Raghuvir Prasad Trivedi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 21.38 MB | This Book has 261 Pages | The Download link of the book " Arthshastra Shabd-Kosh " is given above, you can downlaod Arthshastra Shabd-Kosh from the above link for free | Arthshastra Shabd-Kosh is posted under following categories education |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 21.38 MB
कुल पृष्ठ : 261

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

अर्थशास्त्र उपयोगिता की दृष्टि से एक अत्यन्त व्यापक विषय है। स्वतंत्रता के स्वर्णप्रभात में ऐसे व्यापक विषय का शब्दकोष बहुत गम्भीर विचार और मनन का विषय है। राष्ट्र के आर्थिक, राजनैतिक एवं बौद्धिक निर्माण तथा जीवन के अनेक शब्दों को हमें इसके द्वारा प्रस्तुत करना है। इन शब्दों में वास्तविक जीवन हो, अर्थ की सच्ची जागृति हो और हो भारत की सम्पूर्ण, भाषानिधि के सच्चे स्वरूप का ज्वलन्त दर्शन । तभी यह सम्भव होगा कि भारत की विविध भाषाओं के शब्द-भण्डार में एक निश्चित सम्मेल उपस्थापित हो सकेगा। फिर क्या यह सम्भव न होगा कि जिस राष्ट्रभाषा के सुन्दर स्वरूप के लिये आज भारत लालायित है, वह उसे अनायास ही मिल जायगा । पारिभाषिक क्षेत्र को पारस्परिक सम्बद्धता के आधार पर हमारी समस्त भाषाओं के भीतर ऐक्य एवं सानिद्धय रूपिणी भागीरथी की वह पुण्यतम सलिल धारा सदैव के लिये बहती रहेगी जिससे हमें भारत के एकत्व तथा ऐक्यभाव का अटूट दर्शन पुनः मिल सकेगा। क्या हमें यह अभीष्ट नहीं है ?

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *