अलादीन का जादुई चिराग : सजल शर्मा | Aladin ka jadui chirag : Sajal Sharma

अलादीन का जादुई चिराग : सजल शर्मा | Aladin ka jadui chirag : Sajal Sharma

अलादीन का जादुई चिराग : सजल शर्मा | Aladin ka jadui chirag : Sajal Sharma के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अलादीन का जादुई चिराग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sajal Sharma | Sajal Sharma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 9.6 MB है | पुस्तक में कुल 120 पृष्ठ हैं |नीचे अलादीन का जादुई चिराग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अलादीन का जादुई चिराग पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, Uncategorized

Name of the Book is : Aladin ka jadui chirag | This Book is written by Sajal Sharma | To Read and Download More Books written by Sajal Sharma in Hindi, Please Click : | The size of this book is 9.6 MB | This Book has 120 Pages | The Download link of the book "Aladin ka jadui chirag" is given above, you can downlaod Aladin ka jadui chirag from the above link for free | Aladin ka jadui chirag is posted under following categories Stories, Novels & Plays, Uncategorized |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 9.6 MB
कुल पृष्ठ : 120

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निकाली। अंगूठी अलादीन को देता हुआ वह बोला-"लो बेटे, यह अंगूठी पहन लो और खुदा को याद करके, इस द्वार में उतर जाओ। यह द्वार पार करने के बाद तुम्हें एक खूबसूरत बाग मिलेगा, उस बाग में एक विशाल मंदिर हैं, तुम उस मंदिर में बचिक प्रवेश कर जाना। अंदर तुम्हें एक चिराग जलता हुआ नजर आएगा। तुम उस चिराग को बुझा देना तथा उसे अपनी जेब में रखकर तुरंत वापस आ जाना। यह अंगूठी तुम्हारी रक्षा करेगी।" | उस सुरंग के अंदर जाने की बात सुनकर अलादीन घबरा गया। उसने सौदागर से मना कर दिया, परंतु सौदागर के अधिक दबाव डालने पर आखिर उसे तैयार होना पड़ा। उसने सौदागर द्वारा दी अंगूठी पहनी और हिम्मत बांधकर जमीन में बनी सुरंग में प्रवेश कर गया। सुरंग बहुत अंधेरी थी। अलादीन अंधेरे में आगे बढ़ने से घबरा रहा था, परंतु सौदागर की अंगूठी अंधेरे में प्रकाश फैला रही थी। जिससे अलादीन को आगे बढ़ने में सहूलियत हो रही थी। अलादीन सुरंग में बढ़ता गया, बढ़ता ही गया। सुरंग पार करने के बाद अलादीन ने स्वयं को एक शानदार एवं खूबसूरत बाग में खड़ा पाया। उस बाग में नाना प्रकार के वृक्ष लगे थे, जो फल-फूलों से लदे हुए थे। वहां पर चारों ओर रंगीन पत्थर बिखरे पड़े थे जो चमक रहे थे। कुल मिलाकर उसके आस-पास का दृश्य बहुत सुंदर था। अलादीन कुछ पलों तक बाग की सुंदरता निहारता रहा । बाग मैं दिन जैसा प्रकाश फैला हुआ था।
अलादीन को वह विशाल मंदिर भी नजर आया, जो सौदागर ने बताया था। उसने बहुत से रंगीन पत्थर अपनी जेबों में भर लिए।
तत्पश्चात् वह भारी कदमों से मंदिर की ओर बढ़ा। मंदिर में प्रवेश करने के बाद उसने अंदर नजर घुमाई । अंदर उसे एक चिराग जलता हुआ नजर
आ गया। जिसके प्रकाश में सारा कमरा प्रकाशमान हो रहा था। चिराग पर नजर पड़ते ही अलादीन के कानों में सौदागर के कहे वे शब्द गूंज उठे-“उस चिराग को बुझाकर अपनी जेब में रखना तथा तुरंत वहां से भाग आना। अगर तुम देर करोगे तो तुम वहीं दफन हो जाओगे।"
अलादीन ने तत्काल फुर्ती के साथ, जलते चिराग को फंक मारकर बुझाया तथा उसे अपनी जेब के हवाले कर, बाहर की तरफ दौड़ पड़ा। कुछ ही क्षणपरांत वह मुख्य द्वार पर था।
सुरंग के बाहर उसका चाचा बना सौदागर बेचैनी से अलादीन की प्रतीक्षा कर रहा था। अलादीन को आता देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
अलादीन का जादुई चिराग 2 1

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