श्री रामानुजाचार्य जीवन चरित्र : द्वारकाप्रसाद शर्मा | Shree Ramanujacharya Jeevan Charitra : Dwarkaprasad Sharma के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : श्री रामानुजाचार्य जीवन चरित्र है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dwarikaprasad Sharma | Dwarikaprasad Sharma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Dwarikaprasad Sharma | इस पुस्तक का कुल साइज 11 MB है | पुस्तक में कुल 188 पृष्ठ हैं |नीचे श्री रामानुजाचार्य जीवन चरित्र का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्री रामानुजाचार्य जीवन चरित्र पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography
Name of the Book is : Shree Ramanujacharya Jeevan Charitra | This Book is written by Dwarikaprasad Sharma | To Read and Download More Books written by Dwarikaprasad Sharma in Hindi, Please Click : Dwarikaprasad Sharma | The size of this book is 11 MB | This Book has 188 Pages | The Download link of the book "Shree Ramanujacharya Jeevan Charitra" is given above, you can downlaod Shree Ramanujacharya Jeevan Charitra from the above link for free | Shree Ramanujacharya Jeevan Charitra is posted under following categories Biography |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
जिस महानुभावकी निष्ठा अपने सम्प्रदायमें इतनी है, उसका सक्षिप्त परिचय भी देना हम आवश्यक समझते हैं।
जिन लोगका मारवाड़ी-समाजसे कुछ भी सम्बन्ध है, वे पजाब अन्तर्गत भिवानीके हलवासिया-वशको अवश्य ही जानते होंगे। इस वशमें विद्वान्, धार्मिक एव सदाचारी पुरुष सदासे होते चले आते हैं। रायबहादुर साहबके पितामह वैकुण्ठवासी सेठ यमुनादासजी परम अनन्य श्रीवैष्णव थे। आपका सम्बन्ध बृन्दावन श्रीग-मन्दिरके निर्माता श्रीरंग देशिक स्वामौसे था। भिवानी में जी श्रीरगज़ीका मन्दिर है, उसमें जितने उत्सब होते थे, उन सबमें यमुनादासजी बुझी श्रद्धाके साथ सम्मिलित होते थे । आपका भिवानीके सुप्रसिद्ध विद्वान् वासुदेवाचार्यसे बड़ा प्रेम था ! भिवानीमें जितने श्रीवैष्णव ज्ञाते थे, उन सबको सेठ यमुनादासजीकी ओरसे अमनिया और चिदाई के समय एक रुपया मिलता था । आपको ओरसे भूतपुरी तथा श्रीरगममें निजके भवन हैं, जिनमें क्षेत्र चलते थे। कहा जाता है कि आपके बनमें से रुपयेके पन्द्रह आने श्रीवैष्णवकैङ्कर्यमें व्यय होते थे। आपका सौजन्य, भगवद्भक्ति और ब्रह्मण्यता उत्तरसे दक्षिण तक प्रसिद्ध थी । आप सस्कृत भी अच्छी तरह जानते थे और श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण और महाभारतका पाठ कण्ठस्थ किया करते थे। इनके पुत्र और रायबहादुर साहबके स्वर्गवासी पिता सेठ जानकीदासजी थे। सेठ जानकीदासजी दया और उदारताकी तो मान प्रत्यक्ष मूर्ति थे। आप दूसरोंको दु.खी। तो कभी देख ही नहीं सकते थे। आपको भले ही कष्ट सहना पड़े, पर दूसरों को कष्टमें देखना आपके लिये असम्भव था। तन-मन-धनसे जैसे हो, वैसे दीनदुखिके दुखको दूर करना आपका व्रत-सा था । आप बड़े सुशील, उदार एवं पूरै व्यापारी थे। आप चालीस वर्षकी अवस्थामे हैदराबादमें पश्चत्वको प्राप्त