अपने समय का आइना : सुभाष सेतिया | Apne Samay Ka Aaina : Subhash Setiya के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : अपने समय का आइना है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Subhash Setiya | Subhash Setiya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Subhash Setiya | इस पुस्तक का कुल साइज 27.2 MB है | पुस्तक में कुल 194 पृष्ठ हैं |नीचे अपने समय का आइना का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अपने समय का आइना पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, Knowledge, manovigyan
Name of the Book is : Apne Samay Ka Aaina | This Book is written by Subhash Setiya | To Read and Download More Books written by Subhash Setiya in Hindi, Please Click : Subhash Setiya | The size of this book is 27.2 MB | This Book has 194 Pages | The Download link of the book "Apne Samay Ka Aaina" is given above, you can downlaod Apne Samay Ka Aaina from the above link for free | Apne Samay Ka Aaina is posted under following categories Uncategorized, Knowledge, manovigyan |
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यह पुस्तक
ज्ञान और अनुभव बांटने से बढ़ता है। शायद यही सच्चाई हर संवेदनशील और चिंतनशील व्यक्ति को अपने को अभिव्यक्त करने को प्रेरित करती है। कवि, लेखक या कलाकार जो कुछ अपने आसपास देखता, सुनता, पदता व महसूस करता है, उसे ही अपनी कल्पना, चिंतन और शैली के रंग-रूप से सजाकर प्रस्तुत करता है। कवि, लेखक या कलाकार की यही प्रस्तुति साहित्य, कला, संगीत तथा अन्य कलारूपों में अस्तित्व में आती हैं।
लेखक या कलाकार अतीत के सागर में गोते लगाए अथवा सुदूर भविष्य की कपोल कल्पनाओं के सहारे विविध चित्र खींचे, उसकी प्रेरणा और अनुभव को सींचता वर्तमान ही हैं। कानची रचनाएं इस तथ्य को साक्षी हैं कि उनके रचनाकारों का मुख्य उपजींच्या उनका अपना काल, समय और वातावरण रहा हैं। कोई भी व्यक्ति अपने वर्तमान से उदासीन रहकर जन का ही नहीं सकता। वह वर्तमान के प्रश्नों के उत्तर तलाशने के लिए ही अतीत और भविष्य की ओर देखता है। अपने समय को पहचानने की इस कोशिश का ही प्रतिफल यह पुस्तक है।
आज के जटिल संसार में कोई भी चिंत्तनाशौल सृजनक किसी एक क्षेत्र, रुचि अथवा चिंता तक सीमित रहकर संतोष नहीं कर सकता। उसे राजनीति, धर्म, अपराध, हिंसा, सेक्स, युद्ध और प्राकृतिक विपदा जैसे सभी मुद्दे विचलित करते हैं और अह सब पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। यहीं प्रतिक्रिया जब अध्ययन, विश्लेषण, शोध और समाधान की सोच के साथ लेखनीबद्ध होती है तो वह रचना का रूप ले लेती है। समय-समय पर भारतीय मानस को आलोड़ित करने वाली समस्याओं के बारे में अध्ययन, अनुभव तथा शिंतन पर आधारित प्रतिक्रिया ही इस संकलन के लेखों की पूर्वपीठिका है।
एक बात और। व्यवस्थित प्रतिक्रिया बहुधा किसी दृष्टिकोण, पूर्वधारणा या दुराग्रह पर आधारित होती हैं। हर बौद्धिक प्रतिक्रिया के लिए कोई न कोई निकष या कसरी होना जरूरी है। निसंदेह हम किसी प्रचलित विचारधारा, बाद अथवा मत से प्रभावित या उसके पक्षधर हो सकते हैं। यह भी संभव है कि समय के साथ हमारी विचारधारा बदल जाए। फिर भी किसी एक समय पर किसी वाद या विचारारा के प्रति झुकाव होना स्वाभाविक है। कोई भी लेखक या कलाकार इस संभावना से बच नहीं सकता। बचने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। लेखक को रचना में उसकी विचारधारा या दृष्टिकोण नहीं झलकता तो वह अपनी दृष्टि के प्रति ईमानदार नहीं है।
6 • अपने समय का
आईना
Apne samay ka aaina