लाल किताब – 1941 : पं रूपचंद जोशी | Lal Kitab (Laal Kitaab) – 1941 : Roopchand Joshi

लाल किताब – 1941 : पं रूपचंद जोशी | Lal Kitab (Laal Kitaab) – 1941 : Roopchand Joshi

लाल किताब – 1941 : पं रूपचंद जोशी | Lal Kitab (Laal Kitaab) – 1941 : Roopchand Joshi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : लाल किताब - 1941 है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Roopchand Joshi | Roopchand Joshi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 11MB है | पुस्तक में कुल 521 पृष्ठ हैं |नीचे लाल किताब - 1941 का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | लाल किताब - 1941 पुस्तक की श्रेणियां हैं : jyotish

Name of the Book is : Lal Kitab (Laal Kitaab) - 1941 | This Book is written by Roopchand Joshi | To Read and Download More Books written by Roopchand Joshi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 11MB | This Book has 521 Pages | The Download link of the book "Lal Kitab (Laal Kitaab) - 1941" is given above, you can downlaod Lal Kitab (Laal Kitaab) - 1941 from the above link for free | Lal Kitab (Laal Kitaab) - 1941 is posted under following categories jyotish |

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पुस्तक का साइज : 11MB
कुल पृष्ठ : 521

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कुण्डली मुश्तरका वानदान
कुर्राह हवाई
सूरज-जहाँ कि खुद देने वाले की अपनी कुण्डली
एक महीना में जो दिन जितनी दाफा आवे, उसी वाना नम्बर में लो। मसलन एक महीना में सोमवार 4 दफ़ा हो, तो चंदर नम्बर ३ का होगा।
लोष के साल में राहु केतु अपने-अपने घर के यानि राहु नं ० 6, केतु नं० 2का होग, वाकी साल राहु नं. 12. केतु नः 8॥ जब कोई ग्राहधाल काम न देखे, और तमाम तरह से मायूसी होवे, तो बुनियादी रुकावट देखने के लिए ये कुण्डली काम देगी, मगर
में हो। वृहस्पत - अशा
जहाँ कि बावे की कुण्डली चंदर - माता
में वृहस्पत लित्वा हो, शुक्कर - श्री
उसी घर में देखें मंगल - भाई बड़ा वाले की कुण्डली में बृहस्पत बुध - बहन
लिखें। इसी तरह लव सनीचर - हमउम्र मगर रिश्ते रिश्तेदार जो रिश्तेदार में फ़र्क
न होवें, उन रिश्तेदारों राहु - ससुराल
के मुत'ल्लका ग्रह टेवे - औलाद, लड़का वाले के अपने ही देखे
के बदस्तूर लेवें। मुश्तरका असर सात पुश्त तक का होगा, ३ऊपर, ३ नीचे, दरमियान में सूरज

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