मन की शक्तियाँ तथा जीवन गठन की साधनाएं : स्वामी विवेकानंद | Man Ki Shaktiya Tatha Jeevan Gathan Ki Saadhnaye : Swami Vivekanand के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : मन की शक्तियाँ तथा जीवन गठन की साधनाएं है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Vivekanand | Vivekanand की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Vivekanand | इस पुस्तक का कुल साइज 3.9 MB है | पुस्तक में कुल 47 पृष्ठ हैं |नीचे मन की शक्तियाँ तथा जीवन गठन की साधनाएं का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मन की शक्तियाँ तथा जीवन गठन की साधनाएं पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm
Name of the Book is : Man Ki Shaktiya Tatha Jeevan Gathan Ki Saadhnaye | This Book is written by Vivekanand | To Read and Download More Books written by Vivekanand in Hindi, Please Click : Vivekanand | The size of this book is 3.9 MB | This Book has 47 Pages | The Download link of the book " Man Ki Shaktiya Tatha Jeevan Gathan Ki Saadhnaye" is given above, you can downlaod Man Ki Shaktiya Tatha Jeevan Gathan Ki Saadhnaye from the above link for free | Man Ki Shaktiya Tatha Jeevan Gathan Ki Saadhnaye is posted under following categories dharm |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
में अपने अपने प्रश्न निधित कर लिये थे और भूल बचाने के लिये कागज पर लिख कर उन्हें अपनी जेबों में रख लिये थे । उस व्याप्त ने क्यों ही इममें से एक को देखा इमारे सारे गुप्त प्रश्ों को दुइरा ही नहीं दिया वरन् उनके उत्तर भी दे दिये। तत्पश्चात् उसने कागज़ पर कुछ लिखा और उसे मोड़ कर उस पर मुझसे इस्ताक्षर करने को कहा | ऐसा करने के बाद उसके कथनानुसार मैंने उस कागज़ की पुड़िया को बिना देखे ही तब तक के लिये अपनी जेब में रख लिया जब तक वह खये उसे दिखलाने के लिये न कह। मेरे सब साथियों के साथ भी ऐसा ही किया गया। तत्पश्चात भविष्य में घटने वाली कुछ घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए उसने हमसे कहा कि इम किसी भी भाषा के किसी भी शब्द या वाक्य की अपने मन में सोच लें। वह संस्कृत बिल्कुल नहीं जानता ऐसा समझ कर मैंने संस्कृत DDDL DD DS DBDgg DD Du DDD DD D DD DD gKgg uBDS नुसार जब मैंने जेब में से निकाल कर कागज के उस टुकड़े को देखा तो मदान आश्चर्य हुआ। केि वह संस्कृत का बड़ा वाक्य ज्यों का क्यों वहाँ लिखा हुजा है ! एक घंटा पहिले उत्त कागज़ पर उस वाक्य को लिखते समय अपनी बात की पुष्टि के लिये उसने यद भी सूचित कर दिया था कि यह व्यक्ति इसी वाक्य की अपने मन में निधित करेगा और यह सल्य निकला। मेरे दूसरे साथी से भीजिनकी जेब में भी भी वैसा ही कागज का टुकड़ा रखा हुआ थाअपने मन में कोई वाक्य सोच लेने के लिये कहा गया । उन्होंने
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