श्रीमद्भागवद्गीता ( गीता ) :Sampurna | ShrimadBhagvadGita (Gita) : Sampurna के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : श्रीमद्भागवद्गीता ( गीता ) है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Krishna | Shri Krishna की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shri Krishna | इस पुस्तक का कुल साइज 485 KB है | पुस्तक में कुल 256 पृष्ठ हैं |नीचे श्रीमद्भागवद्गीता ( गीता ) का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्रीमद्भागवद्गीता ( गीता ) पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press
Name of the Book is : ShrimadBhagvadGita (Gita) | This Book is written by Shri Krishna | To Read and Download More Books written by Shri Krishna in Hindi, Please Click : Shri Krishna | The size of this book is 485 KB | This Book has 256 Pages | The Download link of the book "ShrimadBhagvadGita (Gita)" is given above, you can downlaod ShrimadBhagvadGita (Gita) from the above link for free | ShrimadBhagvadGita (Gita) is posted under following categories dharm, gita-press |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
रखते हुए आसक्ति और फलकी इच्छाका त्याग कर भगवदाज्ञानुसार केवल भगवान्के ही लिये सब कर्मोंका आचरण करना (अ० २ श्लोक ४८, अ० ५ श्लोक १०) तथा श्रद्धा-भक्तिपूर्वक मन, वाणी और शरीरसे सब प्रकार भगवान्के शरण होकर नाम, गुण और प्रभावसहित उनके स्वरूपका निरन्तर चिन्तन करना (अ० ६ श्लोक ४७), यह कर्मयोगका साधन है। उत्त दोनों साधनोंका परिणाम एक होनेके कारण वे वास्तव में अभिन्न माने गये हैं (अ० ५ श्लोक ४-५)। परन्तु साधनकालमें अधिकारी-भेदसे दोनोंका भेद होनेके कारण दोनों मार्ग भिन्न-भिन्न बतलाये गये हैं (अ० ३ श्लोक ३)। इसलिये एक पुरुष दोनों मार्गोंद्वारा एक कालमें नहीं चल सकता, जैसे श्रीगंगाजीपर जानेके लिये दो मार्ग होते हुए भी एक मनुष्य दोनों मार्गोंद्वारा एक कालमें नहीं जा सकता। उत्त साधनोंमें कर्मयोगका साधन संन्यास-आश्रममें नहीं बन सकता, क्योंकि संन्यास-आश्रममें कमाँका स्वरूपसे भी त्याग कहा गया है और सांख्ययोगका साधन सभी आश्रमोंमें बन सकता है। यदि कहो कि सांख्ययोगको भगवान्ने संन्यासके नामसे कहा है, इसलिये उसका संन्यास-आश्रममें ही अधिकार है, गृहस्थमें नहीं, तो यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि दूसरे अध्यायमें श्लोक ११ से ३० तक जो सांख्यनिष्ठाका उपदेश किया गया है, उसके अनुसार भी भगवान्ने जगहजगह अर्जुनको युद्ध करनेकी योग्यता दिखायी है। यदि गृहस्थमें सांख्ययोगका अधिकार ही नहीं होता तो भगवान्का इस प्रकार कहना कैसे बन सकता? हाँ, इतनी विशेषता अवश्य है कि साख्यमार्गका अधिकारी देहाभिमानसे रहित होना चाहिये; क्योंकि जबतक शरीर में अहंभाव रहता है, तबतक सांख्ययोगका साधन भली प्रकार समझमें नहीं आता। इसीसे भगवान्ने साख्ययोगको कठिन बतलाया है (अ० ५ श्लोक ६) तथा (कर्मयोग) साधनमें सुगम होनेके कारण अर्जुनके प्रति जगह-जगह कहा है कि तू निरन्तर मेरा चिन्तन करता हुआ कर्मयोगका आचरण कर।
Very grateful
Very grateful
i like that
How to download this??
Poweful
god bless u
nice
Thank you ?❤️
One of the my favourite book….
It’s complete solution for every problem of life….