श्री साईं सच्चरित्र : शिवराम ठाकुर हिंदी पुस्तक | Shri Sai Sachcharitra : Shivram Thakur Hindi Book

श्री साईं सच्चरित्र : शिवराम ठाकुर | Shri Sai Sachcharitra : Shivram Thakur

श्री साईं सच्चरित्र : शिवराम ठाकुर | Shri Sai Sachcharitra : Shivram Thakur

श्री साईं सच्चरित्र : शिवराम ठाकुर | Shri Sai Sachcharitra : Shivram Thakur के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : श्री साईं सच्चरित्र है | इस पुस्तक के लेखक हैं : shivram thakur | shivram thakur की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.2 MB है | पुस्तक में कुल 190 पृष्ठ हैं |नीचे श्री साईं सच्चरित्र का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्री साईं सच्चरित्र पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, dharm

Name of the Book is : Shri Sai Sachcharitra | This Book is written by shivram thakur | To Read and Download More Books written by shivram thakur in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.2 MB | This Book has 190 Pages | The Download link of the book "Shri Sai Sachcharitra" is given above, you can downlaod Shri Sai Sachcharitra from the above link for free | Shri Sai Sachcharitra is posted under following categories Biography, dharm |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 8.2 MB
कुल पृष्ठ : 190

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मैंने शिरडीवासियों से प्रश्न किया कि जो कुछ बाबाने अभी किया है, उसका यथार्थ में क्या तात्पर्य हैं? उन्होंने मुझे बतलाया कि गाँव में विषुचिका(हैंजा) का जोरों से प्रकोप हैं और उसके निवारणार्थ ही बाबा का यह उपचार है। अभी जो कुछ आपने पीसते देखा था, वह गेहूँ नहीं, वरन् विषुचिका (हैजा) थी जो पीसकर नष्ट-भ्रष्ट कर दी गई हैं। इस घटना के पश्चात् सचमुच विषुचिका की संक्रामकता शांत हो गई और ग्रामवासी सुखी हो गये।
यह जानकर मेरी प्रसन्नता का पारावार न रहा। मेरा कौतुहल जागृत हो गया। मैं स्वयं से प्रश्न करने लगा कि आर्ट और विषुचिका (हैजा) रोग का भौतिक तथा पारस्परिक क्या सम्बंध हैं? इसका सूत्र कैसे ज्ञात हो? घटना बुद्धिगम्य सी प्रतीत नहीं होती। अपने हृदय की सन्तुष्टि के हेतु इस मधुर लीला का मुझे चार शब्दों में महत्व अवश्य प्रकट करना चाहिए। लीला पर चिन्तन करते हुऐ मेरा हृदय प्रफुल्लित हो उठा और इस प्रकार बाबा का जीवन चरित्र लिखने के लिए मुझे प्रेरणा मिली। यह तो सब लोगों को विदित ही है कि यह कार्य बाबा की कृपा और शुभ आशीर्वाद से सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया।
आटा पीसने का तात्पर्य
| शिरडीवासियों ने इस आटा पीसने की घटना का जो अर्थ लगाया, वह तो प्रायः ठीक ही है; परन्तु उसके अतिरिक्त मेरे विचार से कोई अन्य अर्थ भी हैं। चाचा शिरडी में ६० वर्षों तक रहे और इस दीर्घ काल में उन्होंने आटा पीसने का कार्य प्रायः प्रतिदिन ही किया। पीसने का अभिप्राय गेहूं से नहीं, वरन् अपने भक्तों के पापों, दुर्भाग्यों, मानसिक तथा शारीरिक तापों से था। उनकी चक्की के दो पाटों में ऊपर का पाट भक्ति तथा नीचे का कर्म था। चक्की का मुठिया जिससे कि वे पीसते थे, वह था ज्ञान । बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक मनुष्य के हृदय से प्रवृत्तियाँ, आसक्ति, घृणा तथा अहंकार नष्ट नहीं हो जाते , जिनका नष्ट होना अत्यन्त दुष्कर हैं, तब तक ज्ञान था। आत्मानुभूति संभव नहीं हैं।
यह घटना कबीरदासजी की इसके तदनुरुप घटना की स्मृति दिलाती है । कबीरदास जी एक स्त्री को अनाज पीसते देखकर अपने गुरु निपटनिरंजन से कहने लगे कि मैं इसलिऐ दन कर रहा है कि जिस प्रकार अनाज चक्की में पीसा जाता है, उसी प्रकार मैं भी भवसागर रुपी धम्की में पीसे जाने की यातना का अनुभव कर रहा हूं।' उनके गुरु ने उत्तर दिया कि घबड़ाओ नहीं, चक्की के केन्द्र में जो ज्ञान रुपी दंड हैं, उसी को दृता से प% लो, जिस प्रकार तुम मुझे करते देख रहे हो। उससे दूर मत जाओ; बस, केन्द्र की ओर ही अग्रसर होते जाओ और तब यह निश्चित हैं कि तुम इस भवसागर रुपी चक्की से अवश्य ही बच जाओगे।
।। श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
१, चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचान कोय।। - कबीर
श्री साईबाबांच्या शुभाशिवदासह

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One comment

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