अधिकार – कौरव पांडव कथा पर आधारित उपन्यास : राजकुमार भ्रमर | Adhikar – Kaurav Pandav Katha Par Adharit Novel : Rajkumar Bhramar | के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : अधिकार - कौरव पांडव कथा पर आधारित उपन्यास है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ramkumar Bhramar | Ramkumar Bhramar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Ramkumar Bhramar | इस पुस्तक का कुल साइज 13.6 MB है | पुस्तक में कुल 166 पृष्ठ हैं |नीचे अधिकार - कौरव पांडव कथा पर आधारित उपन्यास का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अधिकार - कौरव पांडव कथा पर आधारित उपन्यास पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Adhikar - Kaurav Pandav Katha Par Adharit Novel | This Book is written by Ramkumar Bhramar | To Read and Download More Books written by Ramkumar Bhramar in Hindi, Please Click : Ramkumar Bhramar | The size of this book is 13.6 MB | This Book has 166 Pages | The Download link of the book "Adhikar - Kaurav Pandav Katha Par Adharit Novel" is given above, you can downlaod Adhikar - Kaurav Pandav Katha Par Adharit Novel from the above link for free | Adhikar - Kaurav Pandav Katha Par Adharit Novel is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
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‘अधिकार से ‘अग्रज' तक 'महाभारत' के चरित्रों में कर्ण गुण-दोषों से पूर्ण ऐसे मनुष्य हैं, | जिनका जीवन अद्भुत संयोगों और घटनाओं से भले ही भरा हुआ हो, किन्तु उनका संघर्ष नितान्त मानवीय है ! वह कुन्ती की कौमार्यावस्था में उत्पन्न पुत्र हैं, जिन्हें माता ने समाज-भय से त्याग दिया है। अपने अद्भुत व्यक्तित्व र कर्तव्य-क्षमता से कणं समाज में उच्चतम राजनीतिक शक्ति के रूप में तो स्थापित हो जाते हैं; किन्तु तत्कालीन समाज और व्यवस्था में कर्ण उस न्यायिक अधिकार के लिए जीवन-भर तड़पते रहते हैं, जो उनका सहज वांछित हैं ! जीवन-भर वह अज्ञात कुनशीलता का ऐसा कलंक होते रहते हैं, जो उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व और मानवीय गुणों को निरंतर दोषग्रस्त किए जाता है ! उन्हें अपना जन्म-रहस्य मालूम है, अपनी कुलीनता और जन्मदाता माता-पिता की भी जानकारी है; पर वह चाहते हैं कि माता-पिता ही उन्हें स्वीकारे । वह अपने मुंह से उनका नाम लेकर उन्हें लांछित नहीं करना चाहते। समाज, राजनीति और तीनता का ढोंग वैसा होने नहीं देता और कर्ण क्रमशः कुंठाग्रस्त होते हैं। ये विद्रोह के नाम पर दोषों को चुन लेते हैं और फिर लगातार दोष किए जाते हैं। | फिर सहज गुणों से पूर्ण मनुष्य का एक भावनापूर्ण नया संघर्ष प्रारंभ होता है । इस संघर्ष को उसने अनजाने ही स्वयं आमंत्रित कर लिया है।
यह है, कर्ण के स्वाभाविक गुण और पीड़ा के कारण ओढ़े गए दोषों का | इंद् ! कर्ण अपने भीतर एकसाथ अच्छे और बुरे आदमी हैं। वे एकसाथ