अधिकार (महासमर भाग-2) | Adhikar (Mahasamar-2)

अधिकार (महासमर भाग-2) | Adhikar (Mahasamar-2)

अधिकार (महासमर भाग-2) | Adhikar (Mahasamar-2)

अधिकार (महासमर भाग-2) | Adhikar (Mahasamar-2) के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अधिकार (महासमर भाग-2) है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Narendra Kohli | Narendra Kohli की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 13.4 MB है | पुस्तक में कुल 378 पृष्ठ हैं |नीचे अधिकार (महासमर भाग-2) का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अधिकार (महासमर भाग-2) पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, education

Name of the Book is : Adhikar (Mahasamar-2) | This Book is written by Narendra Kohli | To Read and Download More Books written by Narendra Kohli in Hindi, Please Click : | The size of this book is 13.4 MB | This Book has 378 Pages | The Download link of the book "Adhikar (Mahasamar-2)" is given above, you can downlaod Adhikar (Mahasamar-2) from the above link for free | Adhikar (Mahasamar-2) is posted under following categories Stories, Novels & Plays, education |

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पुस्तक का साइज : 13.4 MB
कुल पृष्ठ : 378

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युधिष्ठिर जैसे तड़पकर उठ बैठा, "मैं झूठ नहीं बोलती माँ !" "मैं तुम्हारा विश्वास करती हैं पुत्र ! जिस क्षण कुती को अपने पुत्रों पर विश्वास नहीं रह जायेगा, उसी धाण उसके जीवन में कोई भार भी नहीं रह जायेगा।" कुंती ने रुककर पुत्र को देखा, "तुमने कहा कि कोई बात नहीं है। तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो ।” युधिष्ठिर ने निश्छल और विश्वस्त दृष्टि से माँ की ओर देखा, "मैंने कहा था, कोई विशेष बात नहीं है।" और अकस्मात् ही जैसे उसके प्रतिरोध का वाँघ ध्वस्त हो गया और उसका आक्रोश मार्ग पाकर प्रवाहित हो चला, "मुयोधन कहता है कि प्रासाद वा उद्यान उसकै तथा उसके भाइयों के खेलने के लिए है। उसके पिता ने यदि कृपापूर्वक हमें प्रसाद में ठहरने की अनुमति दे दी है, तो इसका अर्थ यह तो नहीं है कि हम सारे प्रासाद के स्वामी हो गये कि स्वेच्छा से जहां वहीं घूमते फिरे''हमें अपनी मर्यादा पहचाननी चाहिए।" उसने फफर मां को | देखो, “अब बताओ ! यह कोई ऐसी बात है, जिसे विशेष रुप में उल्लेखनीय मान| कर मैं तुम्हें बताता ।''

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