अंधा कुआं : लक्ष्मीनारायण लाल | Andha Kuaan : Laxminarayan Lal के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : अंधा कुआं है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Laxminarayan | Laxminarayan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Laxminarayan | इस पुस्तक का कुल साइज 8.4 MB है | पुस्तक में कुल 114 पृष्ठ हैं |नीचे अंधा कुआं का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अंधा कुआं पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Andha Kuaan | This Book is written by Laxminarayan | To Read and Download More Books written by Laxminarayan in Hindi, Please Click : Laxminarayan | The size of this book is 8.4 MB | This Book has 114 Pages | The Download link of the book "Andha Kuaan" is given above, you can downlaod Andha Kuaan from the above link for free | Andha Kuaan is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
खाट पर एक फटा हुआ देशी कम्बल पड़ा है। दीवार में लकड़ी की चार खेटियों गड़ी हैं। दरवाजे से क्रमशः पहली बँटी पर तुलसी के दो माले लटक रहे हैं, दूसरी कैंटी पर जोन्ही की पकी हुई बालियों का एक झोप्पा टॅगा है। तीसरी और चौथी खूटी पर तेल से पुती हुई दो लाठियाँ पड़ी रखी है। चारों खेटियों के बीच तीन ताल है। पहले ताख में मिट्टी का चिराग रक्खा है, और समूचा ताख और उसके आसपास की दीवार का हिस्सा कालिख से जैसे पुता हुआ है। दूसरे ताव में आल्हा और रामायण की पोथियाँ कपड़े में बँधी हुई रक्खी हैं, और तीसरे ताल में एक मटमैला-सा बोतल रखा है।
आषाढ़ मास के प्रारम्भिक दिन हैं। आषाढ़ की पहली वर्षा हो चुकी है। दिन डूबने में आधा घण्टा शेष है।
| पर्दा उठने पर उक्त बरामदे का स्टेज बिल्कुल सूना मिलता है। कुछ क्षणों के बाद पृष्ठभूमि में कुछ गिरने और टूटने की आवाज होती है । उसके साथ ही साथ किसी पुरुष की क्रोधभरी, आवेशपूर्ण फटकार सुनायी पड़ती है। भीतर से भागी हुई एक औरत दरवाजे से निकल कर दायीं ओर निकल जाती है। भीतर पुरुष की फटकार और भी बढ़ती है और एकाएक किसी औरत के रोने और चीखने की आवाज उभरती है। क्षण भर बाद, बाहर भागी हुई औरत फिर तेजी से वापस लौटती है और दरवाजे के भीतर निकल जाती है। भीतर, पिटती हुई औरत की चीख भरी आवाज में डंडे के प्रहार की गति, इस तरह मिली रहती है, जैसे खिचे हुए मोटे ताँत को कोई वजाता हुआ रुई चुन रहा हो। वेतरह पिटती हुई औरत की चीख और रुदन से स्टेज का सारा वातावरण करुण हो जाता है। उसी समय दौड़े हुए मिनकू काका, घुटने तक की धोती और ऊपर मिरजई पहने, कंधे पर अँगौछा रक्खे, हाथ में पतला डंडा लिये, दायीं ओर से प्रवेश करते हैं।