शहतूतो वाला कुआ | Shahtuto Wala Kua

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इस पुस्तक का नाम : शहतूतो वाला कुआ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sudeep | Sudeep की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Sudeep | इस पुस्तक का कुल साइज 22.88 MB है | पुस्तक में कुल 466 पृष्ठ हैं |नीचे शहतूतो वाला कुआ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | शहतूतो वाला कुआ पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, Uncategorized
Name of the Book is : Shahtuto Wala Kua | This Book is written by Sudeep | To Read and Download More Books written by Sudeep in Hindi, Please Click : Sudeep | The size of this book is 22.88 MB | This Book has 466 Pages | The Download link of the book "Shahtuto Wala Kua" is given above, you can downlaod Shahtuto Wala Kua from the above link for free | Shahtuto Wala Kua is posted under following categories Stories, Novels & Plays, Uncategorized |
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भूमिका सोहन सिंह सीतल के तूतावाला खूह (शहतूतोंवाला कुआं) जैसे वृहद् और महान उपन्यास के बारे में मेरे जैसे छोटे और अदना लेखक का कुछ भी कहना उसी तरह है जैसे कोई आदमी चिराग लेकर सूर्य के तेज और प्रकाश कं बारे में बात करने लगे। असली पंजाब तो गांवों में ही बसता है। शहतूतोंवाला कुआं और इसके आसपास निर्मित हुई कहानी दोनों एक छोटे-से गांव पीरूवाला में पनपती और पल्लवित होती जिंदगी की दास्तान है। पीरूवाला कसूर के निकट बसा एक गांव है जिसमें शहतूतवाला कुआं वहां पर पनपते-फैलते भाईचारे और हमसाएपन का प्रतीक है। इस कुएं का पानी ठंडा और मीठा है और शहतूतों के पत्ते आसमान की तरफ मुंह उठाए नज्में पढ़ते लगते हैं। शहतूतोंवाले कुएं के दोनों तरफ जो खेत हैं वे सज्जन सिंह और इलमदीन के हैं। दोनों उसी कुएं कौ पानी पीते हैं उसी कुएं की हौदी में नहाते हैं यही कुआं उनके खेतों को पानी देता है दोनों इसी शहतूतवाले कुएं के नीचे खटिया डालकर बैठते हैं और दुख-सुख की बातें करते हैं । छह-सात पीढ़ियों पहले एक बाबा यात्री हुआ करता था जो एक सौ तीस बरस तक जिया । यात्री के दो बेटे थे-सुद्ध और बुद्धू । बड़े बेटे सुद्धू का वंशज था सज्जन सिंह और छोटे बेटे बुद्ध का अंश था इलमदीन । एक ही पूर्वज यानी बाबा यात्री की औलादें। परस्पर प्यार कैसे न होता। प्यार के अलावा इस गांव के हिंदुओं सिखों मुसलमानों की रीतियां-रस्में भी साझा थीं। बाबा यात्री की समाधि को गांव के सभी परिवार किसी बड़े पहुंचे हुए पीर-फकीर की तरह पूजते थे। इस खुली-निर्बाध और आत्मीय फिजा में जहर घोलनेवाले का नाम है धनना शाह जो हर साहूकार की तरह ब्याज पर रुपए देता है और दोगुने-चौगुने पर अंगूठा लगवा लेता है--और फिर अभावग्रस्त किसानों की लाचारी से फायदा उठाकर उनकी जमीनें हड़प लेता है। एक दिन वह प्यास से तड़पकर मरने को ही था कि शहतूतोंवाले कुएं के पानी ने उसे आब-ए-हयात की तरह बचा लिया। सज्जन सिंह और इलमदीन ने उसे आदरसहित पानी पिलाया हंसते-खेलते उसके साथ छोटी-छोटी मसखरियां कीं और शाह की नजर उस शहतूतोंवाले कुएं में उलझ गई । उसे हथियाने के लिए वह उसी दिन से दांव-पेंच बरतने