अशोक : डी आर भंडारकर हिंदी पुस्तक | Ashok : D R Bhandarkar Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 12.9 MB है | पुस्तक में कुल 307 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, history, india, Knowledge, world
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प्रावकथन ग है या नही श्रौर यदि की है तो कितनी यह वात तो विद्वान श्रौर इतिहासन्न ही वता सकते हैं । परन्तु यह जानने के लिए कि मेरा प्रयत्न कहाँ तक सफल हुआ्रा है मैंने झ्पनी पुस्तक के पहले सात ध्यायो के पेज प्रूफ उपलब्ध होते ही फ्रेच विद्वानु को भेजे थे श्रौर उनसे यह प्राथना की थी कि वे इस पुस्तक के बारे में श्रपना विचार नि सकोच होकर बताएं । परन्तु बहुत दिनो तक कोई उत्तर नहीं आ्राया श्रौर जिस समय प्राक्कथन कम्पोज हो रहा था ठीक उस समय वह चिर्-प्रती क्षित पत्र झ्राया । इसमे शुरू मे लिखा है- एक वृद्ध सहयोगी के कुछ-कुछ जर्जर स्वास्थ्य के कारण हुई देरी को क्षमा कीजिए । मैं पहले ही य्रापके भेजे हुए अशोक के पेजों के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता था । मैंने वर्षो पहले इस घार्मिक राजा श्रौर उसके बहुमुल्य शिलालेखो का जो श्रध्ययन किया था श्रापने उसे स्मरण रखने की कृपा की । म॑ श्राप जैसे प्रवुद्ध निर्णायक के निर्णय से क्यो प्रभावित न होता श्राप समझ सकते हैं कि अपने यौवन- काल की वे गवेपणाएँ मुकते हमेशा प्रिय सौर नई लगती हैं । श्रापकी पुस्तक मुभे एक बार फिर उन्हीं गवेपणाश्रो मे पहुँचा देती है। मैं इसके लिए बड़ा कृतन्ञ हूं । कृतज्ञ में इसलिए हूँ क्योकि इससे उस प्रतिभासम्पन्न ग्रौर उत्साहमय कौशल का एक उज्ज्वल उदाहरण मेरे सामने श्राया है जिससे आधुनिक भारत श्रपने ग्रतीत की पुन रचना का यत्न कर रहा है । श्री सेनाटं ने अपने पत्र मे मुझे स्पप्ट रूप से बता दिया है कि वे किस-किस वात मे मुझसे मतभेद रखते है । एक को छोडकर ये सब मतभेद गौण मतभेद हैं । मुख्य मतभेद उस उत्तरदायित्व के विषय से है जो मैने उसकी विदेश-नीति के परिवर्तन के विपय मे उस पर डाला है भ्रर्थात् उसके दयापुर्ण विचारों की वह कमजोरी