भगवतगीता का मनोविज्ञान भाग-1 | Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1

भगवतगीता का मनोविज्ञान भाग-1 | Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1

भगवतगीता का मनोविज्ञान भाग-1 | Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1 के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भगवतगीता का मनोविज्ञान भाग-1 है | इस पुस्तक के लेखक हैं : osho | osho की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 21.6 MB है | पुस्तक में कुल 350 पृष्ठ हैं |नीचे भगवतगीता का मनोविज्ञान भाग-1 का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भगवतगीता का मनोविज्ञान भाग-1 पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, manovigyan, Spirituality -Adhyatm

Name of the Book is : Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1 | This Book is written by osho | To Read and Download More Books written by osho in Hindi, Please Click : | The size of this book is 21.6 MB | This Book has 350 Pages | The Download link of the book "Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1" is given above, you can downlaod Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1 from the above link for free | Bhagwadgeeta Ka Manovigyan Bhag-1 is posted under following categories dharm, manovigyan, Spirituality -Adhyatm |


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पुस्तक का साइज : 21.6 MB
कुल पृष्ठ : 350

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आत्मा, न जन्म लेती है, न मरती है; न उसका प्रारंभ है, न उसका अंत है-जब हम ऐसा कहते हैं, तो थोड़ी-सी भूल हो जाती है। इसे दूसरे ढंग से कहना ज्यादा सत्य के करीब होगा : जिसका जन्म नहीं होता, जिसकी मृत्यु नहीं होती, जिसका कोई प्रारंभ नहीं है, जिसका कोई अंत नहीं है, ऐसे अस्तित्व को ही हम आत्मा कहते हैं। निश्चित ही, अस्तित्व प्रारंभ और अंत से मुक्त होना चाहिए। जो है, दैट व्हिच इज़, उसका कोई प्रारंभ नहीं हो सकता। प्रारंभ का अर्थ यह होगा कि वह शुन्य से उतरे, ना-कुछ से उतरे। और प्रारंभ होने के लिए भी प्रारंभ के पहले कुछ तैयारी चाहिए। प्रारंभ आकस्मिक नहीं हो सकता। सब प्रारंभ पूर्व की तैयारी से, पूर्व के कारण से बंधे होते हैं, कॉजेलिटि से बंधे होते हैं।

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