छायावाद की काव्य साधना | Chayavaad Ki Kabya Sadhana

छायावाद की काव्य साधना-Chayavaad Ki Kabya Sadhana

छायावाद की काव्य साधना-Chayavaad Ki Kabya Sadhana के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : छायावाद की काव्य साधना है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Prof. Chema M A | Prof. Chema M A की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 42.0 MB है | पुस्तक में कुल 390 पृष्ठ हैं |नीचे छायावाद की काव्य साधना का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | छायावाद की काव्य साधना पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, others, Poetry

Name of the Book is : Chayavaad Ki Kabya Sadhana | This Book is written by Prof. Chema M A | To Read and Download More Books written by Prof. Chema M A in Hindi, Please Click : | The size of this book is 42.0 MB | This Book has 390 Pages | The Download link of the book "Chayavaad Ki Kabya Sadhana" is given above, you can downlaod Chayavaad Ki Kabya Sadhana from the above link for free | Chayavaad Ki Kabya Sadhana is posted under following categories history, others, Poetry |


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पुस्तक का साइज : 42.0 MB
कुल पृष्ठ : 390

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शुद्ध रूप में 'ध्वनि, लक्षणा की मात्रा मैं नहीं प्रयुक्त है, पर ‘प्रसाद 'निराला' और महादेवी के काव्य मैं कहीं-कहीं ध्वनि का बड़ा ही सुन्दर विधान हुआ है। गुण एवं प्रभाव-साम्य के आधार पर आये प्रतीक लक्षणा के अन्र्तगत होकर भी, एक स्वतंत्र शैली का निर्माण करते हैं। 'अप्रस्नुंतीं का मूर्त्त-श्रमूर्त-विधान' श्रौर प्रभाव-साम्य पर श्राश्रृित उपमाना, 'उपचार-वक्रता' के भीतर आते हैं। नादार्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्यय, मानवीव्रण और विरोधाभास-योजना आदि के प्रयोग, अपने काव्य-सौंदर्य के लिये स्थूलतः लक्षणा के भीतर ही आ जायेंगे। 'अलंकारों' में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, समासोक्ति, हेतु, व्यन्त रूपक, श्रुत्यानुप्राप्त, यमक, निदर्शना, श्रप्रस्तुत-प्रशंसा श्राद प्रायः मिल जार्यैर्गे । छायावादी काव्य अधिकांशतः गीति-प्रधान है, किन्तु 'राम की शक्ति-पूजा', 'तुलसीदास' और 'कामायनी" इसकी प्रबंधात्मक सम्भावनाओं के उवलन्त प्रमाण हैं। जब भी इस काव्य में कल्पना भाव-सहयोगिनी होकर आयी हैं, कवि की अनुपम सर्जना-शक्ति के दर्शन होते हैं। 'रहस्यवाद', 'लायावाद के अन्तर्गत ही एक प्रवृत्ति-विशेष है बो आध्यामिक आधार लेकर एकमुखी हो गया है। 'छायावाद" मानववाद
उद्गीत है। 'रहस्यवाद’, ‘आत्मा और ‘परमात्मा' के प्रणय-सम्बंब का काव्य है, जहाँ संसार या प्रकृति सत्य नहीं, उसके पीछे हँसता-खेलता अनन्त-अखंड रहस्य-चेतन 'परमात्मा सत्य है। 'छायावाद में प्रकृति मानव-सापेक्ष्य या उसकी द्वी कोटि की सम-चेतन, 'रहस्यवाद' की प्रकृति परमात्म-सापेक्ष या अलौकिक संकेतों का माध्यम है। उसकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं। उसकी प्रतीकात्मक या सांकेतिक सत्ता भी यदि कुछ हैं तो वह भी उसी प्रकार परमात्मा की वियोगिनी और उस 'परम प्रियतम बिना अपूर्ण है, जैसे स्वयं 'व्यष्टि आत्मा' । 'रहस्यवाद', 'अवतारवाद से परे 'असीम सत्ता' के प्रेम पर बल देता है, जबकि 'छायावाद उस परम सत्ता द्वारा

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