द्रव्य संग्रह : पनान्लाल | Dravy Sangarah : Pananlal vakalivajan

द्रव्य संग्रह : पनान्लाल | Dravy Sangarah : Pananlal vakalivajan

द्रव्य संग्रह : पनान्लाल | Dravy Sangarah : Pananlal vakalivajan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : द्रव्य संग्रह है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Pananlal | Pananlal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.7MB है | पुस्तक में कुल 72 पृष्ठ हैं |नीचे द्रव्य संग्रह का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | द्रव्य संग्रह पुस्तक की श्रेणियां हैं : jain

Name of the Book is : Dravy Sangarah | This Book is written by Pananlal | To Read and Download More Books written by Pananlal in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.7MB | This Book has 72 Pages | The Download link of the book "Dravy Sangarah" is given above, you can downlaod Dravy Sangarah from the above link for free | Dravy Sangarah is posted under following categories jain |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 1.7MB
कुल पृष्ठ : 72

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सिद्धपरमेष्ठीको स्वरुप और ध्यानकी प्रेरणा. गड्डुकम्मदेहो लोपालोयस जाणवो दी। पुरिसापारो अप्पा सिद्धो ज्झाएह लोपसिहरन्धो५१
नष्टाटुक्रर्मदेहः लोकालोकस्य शायकः दृष्टा । पुरुषाकारः आत्मा सिद्धः ध्यायेत लोकशिखरम्थः ।। ५१ ।। अन्वयार्थ (णइकम्मदेहो नाष्टकमदेहः) नष्ट कर दियेहैं आटकर्म देहसें जिसने ( लोयालोयस्स लोकालोकस्य ) लोका लोकका (जाणवो-ज्ञायकः) जाननेवाला और (दा-द्रष्टा ) देबनेवाला ( पुरिसायारो पुरुषाकारः ) देहरहित पुरुषके आकार(लोयसिहरबोलोकशिखरणः ) लोकके अग्रभागम स्थित ऐसा ( अप्पा-आत्मा ) आत्मा ( सिद्धो-सिद्धः ) सिद्ध परमेष्ठी है. सो नित्य ही ( ग्झाएह ध्यायेत ) ध्यावा जावे अर्थात् सारण करने योग्य है ।। ५१ ॥ ५१ मराठीः-ज्याने आठ घातिक मंचा नाश केला आहे, ज्यास देह नाहीं, जो लोकालोकांस जाणतो व पाहतो, जो पुरुषाकार आहे, असा जो त्रैलोक्यशिखरावर वास करणार शुद्धात्मा तो सिद्धपरमेष्ठी होय. त्याचे तुह्मी ध्यान करा.
प्राचार्य परमेष्टीका स्वरूप व उसके ध्यानकी प्रेरणा. दसणणाणपहाणे वीरिपचारित्तवरतवायारे । अप्पं परं च जुजइ सो आयरिओ मुणी ज्झे॥५॥
दुर्शन ज्ञानप्रधाने वीर्यचारित्रग्रजपाचारे ।
आत्मानं परं च युनक्ति सः आचार्यः मुनिः ध्येयः ॥ ५२ ॥ अन्वयार्थ-जो मुनि ( देसणणाणपहाणे-दर्शनज्ञानप्रधाने ) दर्शनाचार ज्ञानाचार है प्रधान जिनमें ऐसे ( वीरियचारित्त

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