ज्ञानसार ग्रंथावली | Gyansar Granthavali के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : ज्ञानसार ग्रंथावली है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Amarchand Nahta | Amarchand Nahta की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Amarchand Nahta | इस पुस्तक का कुल साइज 6.05 MB है | पुस्तक में कुल 496 पृष्ठ हैं |नीचे ज्ञानसार ग्रंथावली का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ज्ञानसार ग्रंथावली पुस्तक की श्रेणियां हैं : Poetry
Name of the Book is : Gyansar Granthavali | This Book is written by Amarchand Nahta | To Read and Download More Books written by Amarchand Nahta in Hindi, Please Click : Amarchand Nahta | The size of this book is 6.05 MB | This Book has 496 Pages | The Download link of the book " Gyansar Granthavali" is given above, you can downlaod Gyansar Granthavali from the above link for free | Gyansar Granthavali is posted under following categories Poetry |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
सन्त पुरुष मानव समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं। विश्व के प्राणियों को उनकै अनुपम देन प्राप्त होती रहती है। उनका साधनामय जीवन मानवसमाज के जीवन निर्माण व उत्थान के लिए आदर्श दीपस्तं मरूप होता है। उनके दर्शन मात्र से मव्य जीवों के हृदय में अपार श्रद्धा उत्पन्न होती है। उनकी प्रशान्त मुद्रा से यति हुदय में मौ शान्ति का अनुभव होता है। मानव ही नहीं उनकी का व कृपा का श्रोत तो पशुपती आदि अवोध प्रारियों पर भी एकसा प्रवाहित होता है, तभी तो योगी के लिये भगवान् पतञ्जलि नै अफ्ने योगशास्त्र में कहा है कि “अहिंसा प्रतिष्ठयां तत्सन्निधौ वैरत्यागः" । उनके विश्वप्रेम की अनुपम भावना से प्रभावित होकर हि और बकरी भी अपने ज्ञातिगत वैरभाव को त्याग कर एक घाट पानी पीते हैं। दुष्ट से दुष्ट प्राण भी उनके प्रभाव से रिष्ट बन जाते हैं। सन्तों का पवित्र जीवन स्वयं कल्याणमय होने के साथ साथ दूसरों के लिए भी कल्याणकारी होता है