ज्ञानयोग का तत्व | Gyanyog Ka Tatva

ज्ञानयोग का तत्व : गीता प्रेस | Gyanyog Ka Tatva : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : ज्ञानयोग का तत्व है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Geeta Press | Geeta Press की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Geeta Press | इस पुस्तक का कुल साइज 68.9 MB है | पुस्तक में कुल 301 पृष्ठ हैं |नीचे ज्ञानयोग का तत्व का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ज्ञानयोग का तत्व पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press
Name of the Book is : Gyanyog Ka Tatva | This Book is written by Geeta Press | To Read and Download More Books written by Geeta Press in Hindi, Please Click : Geeta Press | The size of this book is 68.9 MB | This Book has 301 Pages | The Download link of the book "Gyanyog Ka Tatva " is given above, you can downlaod Gyanyog Ka Tatva from the above link for free | Gyanyog Ka Tatva is posted under following categories dharm, gita-press |
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आत्मा स्वयं ज्ञानरूप होनेके कारण ज्ञानकी प्राप्ति करनी नहीं पड़ती और न उसको प्राप्तिमें कोई परिश्रम या यकी ही आवश्यकता है। किसी अप्राप्त वस्तुको प्राप्त करनेमें परिश्रम और 'यल करना पड़ता है, परंतु यहाँ तो केवल नित्यप्राप्त ब्रह्ममें जो अप्राप्तिका भ्रम हो रहा है उस भ्रमको मिटा देना ही कर्तव्य है। वास्तवमें यह भ्रम ब्रह्मको नहीं है। यह प्रम उसमें है। जो इस संसारके विकारको नित्य मानता है। वास्तवमें तो अह्ममें भूल न होनेके कारण उसे मिटानेके लिये परिश्रम करना भी एक भ्रम ही है, परंतु जबतक भूल है तबतक भूलको मिटानेका साधन करना चाहिये, अवश्य ही उन लोगोंको, जो इस भूलमें हैं। जो इस भूलको मानता है उसके लिये तो यह अनादिकालसे है। ऐसा कहा जाता है कि अनादिकालसे होनेवाली
वस्तुका अन्त नहीं होता। पर यह ठीक नहीं, क्योंकि भूल तो मिटनेवाली | ही होती है, यदि भूल है तो उसका अन्त भी आवश्यक है। यदि ऐसा माना | जाय कि यह सान्त नहीं है तो फिर किसीको भी 'प्राप्ति नहीं हो सकती।
इसलिये यह अनादि और सान्त अवश्य हैं। यदि यह माना जाय कि यह | भूल अनादिकालसे नहीं है, पीछेसे हुई है तो इसमें तीन दोष आते हैं