हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान | Hindi Ke Sufi Premakhyan

हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान : परशुराम चतुर्वेदी | Hindi Ke Sufi Premakhyan : Parashuram Chaturvedi

हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान : परशुराम चतुर्वेदी | Hindi Ke Sufi Premakhyan : Parashuram Chaturvedi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Parashuram Chaturvedi | Parashuram Chaturvedi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 6.6 MB है | पुस्तक में कुल 176 पृष्ठ हैं |नीचे हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, history, india, Poetry

Name of the Book is : Hindi Ke Sufi Premakhyan | This Book is written by Parashuram Chaturvedi | To Read and Download More Books written by Parashuram Chaturvedi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 6.6 MB | This Book has 176 Pages | The Download link of the book "Hindi Ke Sufi Premakhyan" is given above, you can downlaod Hindi Ke Sufi Premakhyan from the above link for free | Hindi Ke Sufi Premakhyan is posted under following categories education, history, india, Poetry |


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पुस्तक का साइज : 6.6 MB
कुल पृष्ठ : 176

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पहले, इसके विषय को ही लेकर लिखे गए शेख निसार कवि के प्रेमाख्यान • ‘यूसुफ जुलेखा' के साथ की जाय तो उस दशा में भी कुछ न कुछ वैसा अन्तर 1. सिद्ध किया जा सकता है। किंतु केवल उसके हो कारण, इसकी परंपरागत रचनाशैली में लक्षित होने वाले किसी स्पष्ट विकास का भी बोध नहीं हो पाता, प्रत्युत ऐसा लगता है कि अभी तक वही पुराना टकसाल काम देता चला जा रहा है जिसकी स्थापना इसके लगभग ६ सौ वर्ष पूर्व हुई होगी।
पता नहीं 'प्रेमदर्पण' के इधर भी कोई सूफी प्रेमाख्यान लिखा गया है या . नहीं। यदि किसी ऐसी रचना का निर्माण हुआ है तो उसका रूप कहाँ तक नबीन
है अथवा किस मात्रा तक उसमें पाये जाने वाले किसी विकास-क्रम का अनमान किया जा सकता है । इसी प्रकार हमारे पास ऐसा कोई दूसरा साधन भी नहीं जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि ऐसी रचनाओं का भविष्य क्या हो सकता है। उपलब्ध सामग्री पर विचार करके इस विषय में, केवल इतना ही मत प्रकट किया जा सकता है जो इस साहित्य के मूल्यांकन से सम्बद्ध है तथा जिसके * अंतर्गत इसके भावी मानव समाज के लिए किसी प्रकार उपयोगी सिद्ध होने वा
न होने की बात भी आ जाती है । हिंदी भाषा में इसका निर्माण उस समय होने लगा था जब इसमें एक ओर जहाँ केवल फुटकल रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही थीं, वहीं दूसरी ओर यदि कोई प्रबंध-काव्य लिखा भी जा रहा था तो वह भी संभवतः या तो किसी पौराणिक ग्रन्थ का अनुवाद जैसा रहा करता था अथवा उन अपभ्रश रचनाओं का अनुकरण मात्र था

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