जन गीता : हरिवंश राय बच्चन | Jan Geeta : Harivansh Ray Bachchan के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : जन गीता है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Harivansh Ray Bachchan | Harivansh Ray Bachchan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Harivansh Ray Bachchan | इस पुस्तक का कुल साइज 73.6 KB है | पुस्तक में कुल 17 पृष्ठ हैं |नीचे जन गीता का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | जन गीता पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge, Poetry
Name of the Book is : Jan Geeta | This Book is written by Harivansh Ray Bachchan | To Read and Download More Books written by Harivansh Ray Bachchan in Hindi, Please Click : Harivansh Ray Bachchan | The size of this book is 73.6 KB | This Book has 17 Pages | The Download link of the book "Jan Geeta" is given above, you can downlaod Jan Geeta from the above link for free | Jan Geeta is posted under following categories Knowledge, Poetry |
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ध्यावहिं जे मोकहुँ जेहि भाँती। पावहिं ते मोकहुँ तेहि भाँती।। भेद समुझि यह, मम-पद-कामी । बेगि बनहिं मम-पथ-अनुगामी।।
हे अर्जुन जो भक्त जिस किसी भी मनोकामना से मेरी पूजा करते हैं, मैं उनकी मनोकामना * पूर्ति करता हूं. मनुश अनेक प्रकार की इच्छाओं *पूर्ति के लिए मेरी शरण लेते हैं (४.११) कर्म-सिद्धिप्रिय जे जग माहीं । देवन्ह पहिं बहु जग्य रचाहीं।। सिद्धि मिलइ तिन्हकै अबिलंबा । मिलइ न पोर चरन अवलंबा।।
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