जीवन शोधन | Jeevan Shodhan

जीवन शोधन | Jeevan Shodhan

जीवन शोधन | Jeevan Shodhan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : जीवन शोधन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Kishori Lal Ghanshyam Mashrubala | Kishori Lal Ghanshyam Mashrubala की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 15 MB है | पुस्तक में कुल 434 पृष्ठ हैं |नीचे जीवन शोधन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | जीवन शोधन पुस्तक की श्रेणियां हैं : Social

Name of the Book is : Jeevan Shodhan | This Book is written by Kishori Lal Ghanshyam Mashrubala | To Read and Download More Books written by Kishori Lal Ghanshyam Mashrubala in Hindi, Please Click : | The size of this book is 15 MB | This Book has 434 Pages | The Download link of the book " Jeevan Shodhan " is given above, you can downlaod Jeevan Shodhan from the above link for free | Jeevan Shodhan is posted under following categories Social |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 15 MB
कुल पृष्ठ : 434

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मैं यह नहीं मानता कि आर्य तत्व-ज्ञानकी भिमारत परिपूर्णताके साथ रची जा चुकी है, अिसमें अब कुछ भी खोज-सुधार या शुद्धिवृद्धिकी गुंजाशि नहीं, अब तो सिर्फ प्राचीन शास्त्रोंको जुदा-जुदा भाप्यों द्वारा या नये भाभ्य रचकर समझाते रहना ही बाकी रहा है। मेरी रायमें नवीन अनुभवों और नवीन विज्ञानकी दृष्टिसे पुरानी बातोंको सुधारने, घटाने-बढ़ाने में जहाँ आवश्यकता हो, भिन्न-भिन्न मत बँधिनेका अधिकार अर्वाचीनका है । अिस अधिकारको छोड़ देने से हिन्दुस्तान ‘अचलायतन हो रहा है । मेरा मत है कि बादरायणके कालसे तत्वज्ञानका विकास प्रायः रुक गया है । अन्होंने पुराने ज्ञानको सूत्रबद्ध करके तत्वज्ञानका दरवाजा बन्द कर दिया और शंकराचार्य तथा बादके आचार्योंने शुस 'पर ताले जड़ दिये । अब अन तालको तो बिना गति नहीं है।

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