कुंडलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि | Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi

कुंडलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि | Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi

कुंडलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि | Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कुंडलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Pt. Shri Ram Sharma Acharya | Pt. Shri Ram Sharma Acharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 4.7 MB है | पुस्तक में कुल 105 पृष्ठ हैं |नीचे कुंडलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कुंडलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि पुस्तक की श्रेणियां हैं : Spirituality -Adhyatm

Name of the Book is : Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi | This Book is written by Pt. Shri Ram Sharma Acharya | To Read and Download More Books written by Pt. Shri Ram Sharma Acharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 4.7 MB | This Book has 105 Pages | The Download link of the book " Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi " is given above, you can downlaod Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi from the above link for free | Kundalini Mahashakti Aur Usaki Sansiddhi is posted under following categories Spirituality -Adhyatm |

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पुस्तक का साइज : 4.7 MB
कुल पृष्ठ : 105

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कुंडलिनी महाशक्ति को तंत्र शास्त्रों में द्विमुखी सर्पिणी कहा गया है। उसका एक मुख मल-मूत्र इंद्रियों के मध्य मूलाधारचक्र में है। दूसरा मुख मस्तिष्क के मध्य ब्रह्मरंध्र में। पृथ्वी के उत्तरीदक्षिणी ध्रुवों में सन्निहित महान शक्तियों का परस्पर आदान-प्रदान निरंतर होता रहता है, इसी से इस पृथ्वी का सारा क्रिया-कलाप यथाक्रम चल रहा है। इसी प्रकार कुंडलिनी शक्ति के ऊपर और | नीचे के जननेंद्रिय और मस्तिष्क के अध:ऊर्ध्व केंद्रों की शक्तियों का निरंतर आदान प्रदान होता रहता है। यह संचार क्रिया मेरुदंड के माध्यम से होती है। रीढ़ की हड्डी इन दोनों केंद्रों को परस्पर मिलाने का काम करती है। वस्तुत: स्थूल कुंडलिनी का महासर्पिणी स्वरूप मूलाधार से लेकर मेरुदंड समेत ब्रह्मरंध्र तक फैले हुए सर्पाकृत कलेवर में ही पूरी तरह देखी जा सकती है। ऊपर नीचे मुड़े हुए दो महान शक्तिशाली केंद्र चक्र ही उसके आगे-पीछे वाले दो मुख हैं।

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