महापुराण समकथा-कोश | Mahapuran Samakatha Kosh

महापुराण समकथा-कोश | Mahapuran Samakatha Kosh

महापुराण समकथा-कोश | Mahapuran Samakatha Kosh के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : महापुराण समकथा-कोश है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dr. Ramsagar Tripathi, Tripathi Ramashankar | Dr. Ramsagar Tripathi, Tripathi Ramashankar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : , | इस पुस्तक का कुल साइज 67.5 MB है | पुस्तक में कुल 375 पृष्ठ हैं |नीचे महापुराण समकथा-कोश का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | महापुराण समकथा-कोश पुस्तक की श्रेणियां हैं : philosophy

Name of the Book is : Mahapuran Samakatha Kosh | This Book is written by Dr. Ramsagar Tripathi, Tripathi Ramashankar | To Read and Download More Books written by Dr. Ramsagar Tripathi, Tripathi Ramashankar in Hindi, Please Click : , | The size of this book is 67.5 MB | This Book has 375 Pages | The Download link of the book "Mahapuran Samakatha Kosh" is given above, you can downlaod Mahapuran Samakatha Kosh from the above link for free | Mahapuran Samakatha Kosh is posted under following categories philosophy |

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पुस्तक का साइज : 67.5 MB
कुल पृष्ठ : 375

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अनिरुद्ध कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र थे। कृष्ण का साला रुक्मी था। यह रुक्मिणी का बड़ा भाई था। रुक्मी अपनी किशोरावस्था से ही कृष्ण से ईष्र्या करता था। किन्तु आगे चलकर सम्बन्ध को सामान्य बनाने की दृष्टि से उसने अपनी पौत्री का विवाह कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ कर दिया। यहाँ यह ध्यान रखना है कि अनिरुद्ध का यह विवाह अपने मामा की पुत्री से ही हुआ है। उन दिनों रुक्मी भोजकट में निवास करता था। अतः अनिरुद्ध के विवाह की बारात भोजकट गई। उस बारात में श्रीकृष्ण के साथ बलराम आदि सभी यादव गये थे। विवाह की विधि पूरी हो जाने पर कलिङ्गराज आदि दुष्ट राजाओं की सलाह से रुक्मी ने बलराम को छूत-क्रीडा के लिये आमन्त्रित किया। बलराम को चूत-क्रीड़ा का महान् शौक था। अतः वे उन दुष्टहृदय राजाओं के साथ घूत-क्रीडा के लिये चले गये। इस क्रीडा में छोटे पणों को पहले तो रुक्मी ने जीता। किन्तु जब बलराम ने कोटिनिष्क (तात्कालिक मुद्रा) का पण रक्खा तो रुक्मी हार गया। परन्तु हारने पर भी वह बार-बार यही कहता रहा कि मैं जीत गया, बलराम हार गये। इस पर कलिङ्गराज और रुक्मी उनकी हँसी उड़ाते रहे। उनके इस व्यवहार को देखकर बलराम क्रुद्ध हो उठे।

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