पंचदशी | Panchdashi

पंचदशी : विध्यारन्य मुनि | Panchdashi : Vidhyaranya Muni

पंचदशी : विध्यारन्य मुनि | Panchdashi : Vidhyaranya Muni के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : पंचदशी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Vidhyaranya Muni | Vidhyaranya Muni की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 19.9 MB है | पुस्तक में कुल 726 पृष्ठ हैं |नीचे पंचदशी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पंचदशी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized

Name of the Book is : Panchdashi | This Book is written by Vidhyaranya Muni | To Read and Download More Books written by Vidhyaranya Muni in Hindi, Please Click : | The size of this book is 19.9 MB | This Book has 726 Pages | The Download link of the book "Panchdashi" is given above, you can downlaod Panchdashi from the above link for free | Panchdashi is posted under following categories Uncategorized |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 19.9 MB
कुल पृष्ठ : 726

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यं यं वास स्मरन् भावं त्यजत्यन्ते कळेयरं वं तमेवैति (प्र. ८-६) प्राणी अपने मरण काल में जिस जिस भाव को स्मरण करके शरीर को छोड़ता है, उसी उस भाव को प्राप्त हो जाता है। बच्चित्ततेनैव प्राजमायाति प्राणतजा युक्तः सात्मना यथा संकदिपर्व लोके नयति (प्र. ३-१० ) [मरते समय जैसा विच अर्थात् संकल्प होता है, मरते समय जिस देवता मनुष्य पशु पक्षी और वृक्ष आदि के शरीर को अच्छा मान लेता है, इस संकल्प से वह अपनी सव इन्द्रियों के साथ मुख्य प्राण में
आ जाता हैं अर्थात् तब केवल प्राण व्यापार चलता है। इन्द्रिय व्यापार रुक जाता है। वह प्राण तेज अर्थात् उदान से युक्त हो कंर भोक्ता को भी संकल्पानुसारी लोक में ले जाता है। कर्म करते समय जैसे संकल्प रहे हैं मरते समय वे वासना रूपसे प्रकट होते हैं। अगले जन्म में उन ही वासनाओं का शरीर पन जाता है । मरण के बाद जैसा शरीर भिलना होता है, वैसी ही वासनायें होती हैं और वे ही योनियां मुमूर्षु को दीखा करती हैं। ऊपर के गीतवाक्य तथा इस श्रुति के कयनानुसार मरते समय के ज्ञान से मुक्ति मिलने की बात समझ में आती हैं।

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