पुण्य-पाप तत्त्व | Punya Paap Tatva के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : पुण्य-पाप तत्त्व है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Kanhaiya Lal | Kanhaiya Lal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Kanhaiya Lal | इस पुस्तक का कुल साइज 8.6 MB है | पुस्तक में कुल 240 पृष्ठ हैं |नीचे पुण्य-पाप तत्त्व का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुण्य-पाप तत्त्व पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm
Name of the Book is : Punya Paap Tatva | This Book is written by Kanhaiya Lal | To Read and Download More Books written by Kanhaiya Lal in Hindi, Please Click : Kanhaiya Lal | The size of this book is 8.6 MB | This Book has 240 Pages | The Download link of the book "Punya Paap Tatva " is given above, you can downlaod Punya Paap Tatva from the above link for free | Punya Paap Tatva is posted under following categories dharm |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
भारतवर्ष में अनेक दर्शन एव धर्म हैं । प्रत्येक दर्शन एव धर्म की तात्विक मान्यताए अन्य दर्शनों एव धर्मों की मान्यताओं से भिन्न हैं। इस भिन्नता के आधार पर ही वे धर्म व दर्शन अपनी पहचान बनाये हुए हैं। इस प्रकार भारतवर्ष में जितने धर्म हैं उतनी ही मान्यताए हैं जो एक-दूसरी से भिन्न हैं। यह भिन्नता यहा तक ही सीमित नही रही प्रत्येक धर्म में अनेक सप्रदाय हैं। इनमें से प्रत्येक संप्रदाय की मान्यता अपने ही धर्म की अन्य संप्रदायों की मान्यताओं से कई अशो में भिन्न होती है। इस प्रकार धर्म और दर्शन के क्षेत्र में उत्पन्न हुई भिन्नताओं को किसी सख्या की सीमा में आबद्ध कर देना सभव नही है। यही बात धर्म-अधर्म, एव पण्य-पाप पर भी घटित होती है।