साहित्य और कला | Sahitya Or Kala के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : साहित्य और कला है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bhagvatsharan Upadhyay | Bhagvatsharan Upadhyay की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Bhagvatsharan Upadhyay | इस पुस्तक का कुल साइज 11.3 MB है | पुस्तक में कुल 225 पृष्ठ हैं |नीचे साहित्य और कला का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | साहित्य और कला पुस्तक की श्रेणियां हैं : literature
Name of the Book is : Sahitya Or Kala | This Book is written by Bhagvatsharan Upadhyay | To Read and Download More Books written by Bhagvatsharan Upadhyay in Hindi, Please Click : Bhagvatsharan Upadhyay | The size of this book is 11.3 MB | This Book has 225 Pages | The Download link of the book " Sahitya Or Kala" is given above, you can downlaod Sahitya Or Kala from the above link for free | Sahitya Or Kala is posted under following categories literature |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
साहित्य लिखा जाता रहा है, कविता भी लिखी जाती रही है, इसलिए यह प्रश्न कुछ लोगों को असामान्य लगेगा । परन्तु असामान्य यह है नही । क्या लिखा गया है ? और, क्या लिखना चाहिए ?--दोनों में अन्तर है, और इस अन्तर के कारण कविगण एक काफी वड़ा वर्ग अथवा सम्प्रदाय ऐसे कवियों की है जो, पूछने पर कि क्यो लिखते हो, कहेगे-आत्मतुष्टि के लिए । रोना और गाना वे मनुष्य की सहज चेष्टाएँ मानते हैं और उनका कहना है कि जिस प्रकार रुदन और हास्य मनुष्य की अनुभूति-विशेष के परिचायक है, विपाद और आनन्द को मुखरित करते हैं, उसी प्रकार गायन या गुनगुनाना भी उल्लास की व्यञ्जना है । परन्तु यह तो स्थिति हुई आदिम मानव की, जो न बोलकर भी कभी जिह्वा को Eठ कर या चेष्टाओं द्वारा अपने हर्ष-विषाद को व्यक्त करता था, जब उसके पास भाषा नही थी, और जैव वह पशु अधिक था मनुष्य कम : मनुष्य कम, अर्थात् समाज का व्यक्ति–उसकी इकाई नितान्त कम ।