संगीत शास्त्र : के. वासुदेव शास्त्री हिंदी पुस्तक | Sangit Shastra : K Vasudeva Shastri Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : संगीत शास्त्र है | इस पुस्तक के लेखक हैं : K Vasudev Shastri | K Vasudev Shastri की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : K Vasudev Shastri | इस पुस्तक का कुल साइज 33.78 MB है | पुस्तक में कुल 429 पृष्ठ हैं |नीचे संगीत शास्त्र का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | संगीत शास्त्र पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge, music
Name of the Book is : Sangit Shastra | This Book is written by K Vasudev Shastri | To Read and Download More Books written by K Vasudev Shastri in Hindi, Please Click : K Vasudev Shastri | The size of this book is 33.78 MB | This Book has 429 Pages | The Download link of the book "Sangit Shastra" is given above, you can downlaod Sangit Shastra from the above link for free | Sangit Shastra is posted under following categories Knowledge, music |
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कलम पर नकलाथ के उततरारध में करणाटक संगीत के उमत दोनों आचारय के। सपकत परसपशा को परतिनिधितव उनहोंने किया । मैने उस समय तक रोगों उनकी छायाओं उनके सवज तथा संचार का अहिछा जञान परापत कर लिया था जब सन १९२१ में परकाशित पुन जञान समाज के समृति गरनथ में संगीत विषयक संसकृत के भाषण मंते देख । उसमें मसे शरी बलतमत ले डेगे सहसरबुदध तथा कुछ अनय विदवानों के वयाखयान पढ़ने का मिले । संगीत रसलोकर नारदी दिकषा तथा पाणिनि शिकषा यही तीन पुसतक थी जिनका अधययन सने पहले पहल किया । ससक़ृत जानने के कारण मुझे सगीत रतनाकर तथा नारदी शिकषा के बछोको का अथे समझने में वहाँ यथेषट सुविधा हुई जहा तक ऐसे विषय का समबनध था जा परावि- घिक न था किनतु उसके पराविधिक अंग में हर दूसरें-वीसरे गठोक पर कठिनाई का सामना करना पडा। पहली समसया शरुतियों और सवरों के पारसपरिक समबसथ में थी जिसका मुझे समाधान करना था। हमें बताया गया हूँ कि सपतक में बाईस शरुतिया होती है षडज में चार ऋषपभ में तीन इतयादि और समसत सात रवरों में बाईसो शरुतियों का समावेश हो जाता है । अब परवन यह था बया परतयेक शरति एक सवर का परतिनिधितव करती है ? गरनथों में जो यह कहा गया हैं कि पडज में चार शरुतियां होती है कया उसका यह आदाय है कि पदुज भी चार होते हे ? कोई भी इसका उततर हा में न देगा। फिर यदि परतयेक शरुति का आणय सवर ही हो तो इसके लिए दो पृथक शबद--शरुति और सवर--रखने की कया आवशयकता है ? और यदि परतयेक शरुति सवर हू तो फिर सवर भी बाईस होने चाहिए जब कि गरनथों में कही भी इनकी अधिक से अधिक संखया १९ के ऊपर नहीं आयी है। मेंने सहजबुदधि से यह परिणाम निकाला कि शरुतिया वे घटक अंग मातर हूं जिनसे सवरों का निरमाण हुआ हू अरथात परतयेक सवर चार तीन या दो शरुतियों के संयोग से बना है। कई वरषों के बाद जब मेने नाटयशासतर का सुषिराधयाय याने ३० वां अधयाय देखा तो मरे. इस विचार की पुषटि हो गयी । किनतु इस पुषटि के बहुत पहले ही मानों मेरे कान में कोई कह उठता था कि मेरा यह सोचना यथारथ है। शरुतियां सवरों के निमाणकारी अंग हैं लेकिन फिर यह परदन उपसथित हुआ कि किसी विशिषट शरति में परतयेक सवर का अपना सथान हू इस कथन का कया तातपरय है ? परतयेक सवर को किमी विशिषट शरुति के रूप में पहचानने में हमें अपने कानों से सहायता मिलती है जिससे इस मतत की पुषटि होती है कि परतयेक सवर एक ही शरुति-विशेष का दयोतक है। इसका उततर मैंने यह कहकर दिया कि यदयपि परतयेक सवर कई शरुतियों के मेल से बनता है फिर भी जो
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