शांति के सोपान | Shanti Ke Sopan के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : शांति के सोपान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Acharya Shri Nanesh | Acharya Shri Nanesh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Acharya Shri Nanesh | इस पुस्तक का कुल साइज 9.85 MB है | पुस्तक में कुल 245 पृष्ठ हैं |नीचे शांति के सोपान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | शांति के सोपान पुस्तक की श्रेणियां हैं : Spirituality -Adhyatm
Name of the Book is : Shanti Ke Sopan | This Book is written by Acharya Shri Nanesh | To Read and Download More Books written by Acharya Shri Nanesh in Hindi, Please Click : Acharya Shri Nanesh | The size of this book is 9.85 MB | This Book has 245 Pages | The Download link of the book "Shanti Ke Sopan" is given above, you can downlaod Shanti Ke Sopan from the above link for free | Shanti Ke Sopan is posted under following categories Spirituality -Adhyatm |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
हुक्मच्छ के अष्टमाचार्य युग पुष श्री ज्ञानेश विश्व की उन विरल वितियों में है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से समाज को सम्यक् जीवन जीने की वह राह दिखाई जिस पर चल कर भव्य आत्माएं अपने कर्मों का धाय कर सोधा की अधिकारिणी बन सकती है। यद्यपि आचार्य श्री जी के शौतिक व्यक्तित्व का अवशान हो चुका है तथापि उनके द्वारा चलाये गये विविध हाशियानों में वह सदा ही प्रतिच्छायित होता रहेगा। इस प्रकार उनका वह व्यक्त रूप ही पर्यवसित होकर उस कृतित्व में शमाहित हो गया है जो उनके द्वारा विरचित साहित्य के प में उपलब्ध है। एक क्रान्तिदर्शी झाचार्य का यह प्रदेय साहित्य की वह अनुपम निधि बन गया है। जो सादिक प्राणियों के लिये प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता रहेगा। इस स्तंभ से विकीर्ण होने वाली प्रकाश रश्मियां युगों-युगों तक आलोक धारा प्रवाहित करती रहे, इसके लिए यह आवश्यक है कि न तो उन साहित्य रश्मियों को क्षीण होने दिया जाये न ही उनकी उपलब्धता बाधित होने दी जाये वरन् आवश्यक यह भी है कि सर्व शामान्यजनों हित उनकी सुलभता सुनिश्चित रखी जायें। इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर श्री शालिले भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ ने उस अनमोल साहित्यिक धरोहर को "नानेश वाणी'' पुस्तक श्रृंखला के अन्तर्गत प्रकाशित करने का निर्णय किया। इस संदर्भ में बैंगलोर निवासी सुश्रावक श्री सोहनलालजी शिपानी ने अर्थ संबंधी व्यवस्था में जो शदप्रयत्न किया, वह विशेष प से उल्लेखनीय है।