स्वतन्त्रयोत्तर काल में जालौन जनपद में जनसँख्या वृध्दि का कृषि विकास पर प्रभाव | Swatantrayottr Kaal May Jaluan Janpad May Janshankshya Bridhi Ka Krishi Vikas Par Prabhav के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : स्वतन्त्रयोत्तर काल में जालौन जनपद में जनसँख्या वृध्दि का कृषि विकास पर प्रभाव है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shrimati Puspanjali | Shrimati Puspanjali की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shrimati Puspanjali | इस पुस्तक का कुल साइज 88.1 MB है | पुस्तक में कुल 286 पृष्ठ हैं |नीचे स्वतन्त्रयोत्तर काल में जालौन जनपद में जनसँख्या वृध्दि का कृषि विकास पर प्रभाव का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | स्वतन्त्रयोत्तर काल में जालौन जनपद में जनसँख्या वृध्दि का कृषि विकास पर प्रभाव पुस्तक की श्रेणियां हैं : Agriculture
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ग्रामीण भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है। स्वतंत्रता प्राप्ति के ७७ वर्ष बीत जाने के उपरान्त भी कृषि और उससे संबंधित कार्यों में यहाँ की लगभग तीन चौथाई जनसंख्या निर्भर पाई जाती है। पॉचवे दशक के उपरान्त कृषि आर्थिकी र जनसंख्या का दबाव बहुत तेजी से बढ़ा है। यहाँ के किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यधिक कमजोर है। परिणाम स्वरूप ये अपने दैनिक जना की आवश्यकताओं को संतुलित भोजन के रूप में प्राप्त कर पाने में आज भी अक्षम है। स्वातंत्र्योत्तर काल के उपरांत हुई जनसंख्या वृद्धि के विपरीत प्रभावों ने कृषिगत अर्थव्यवस्था सहित अन्य संसाधनों पर अपना कुप्रभाव छोड़ा है।