टोबा टेक सिंह : सादत हसन मंटो हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Toba Tek Singh : Saadat Hasan Manto Hindi Book Free PDF Download

टोबा टेक सिंह : सादत हसन मंटो | Toba Tek Singh : Saadat Hasan Manto

टोबा टेक सिंह : सादत हसन मंटो  | Toba Tek Singh : Saadat Hasan Manto

टोबा टेक सिंह : सादत हसन मंटो | Toba Tek Singh : Saadat Hasan Manto के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : टोबा टेक सिंह है | इस पुस्तक के लेखक हैं : manto | manto की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 600 KB है | पुस्तक में कुल 11 पृष्ठ हैं |नीचे टोबा टेक सिंह का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | टोबा टेक सिंह पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Toba Tek Singh | This Book is written by manto | To Read and Download More Books written by manto in Hindi, Please Click : | The size of this book is 600 KB | This Book has 11 Pages | The Download link of the book "Toba Tek Singh" is given above, you can downlaod Toba Tek Singh from the above link for free | Toba Tek Singh is posted under following categories history, Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 600 KB
कुल पृष्ठ : 11

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की - तुम्हारी बेटी रूपकौर ...।' | वह कुछ कहते-कहते रुक गया। बिशनसिंह कुछ याद करने लगा, ‘बेटी रूपकौर?'
फजलुद्दीन ने कुछ रुककर कहा, 'हाँ ...वह ...भी ठीक-ठाक है। ... उसके साथ ही चली गयी थी।' | बिशनसिंह चुप रहा। फजलुद्दीन ने कहना शुरू किया, 'उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम्हारी राज़ी-खुशी पूछता रहूँ। अब मैंने सुना है कि तुम हिन्दुस्तान जा रहे हो - भाई बलबीरसिंह और वधावासिंह से मेरा सलाम कहना - और बहन अमृतकौर से भी। भाई बलबीरसिंह से कहना -- फजलुद्दीन राज़ी-खुशी
है। दो भूरी भैंसें, जो वे छोड़ गये थे, उनमें से एक ने कट्टा दिया है, दूसरी के * कट्टी हुई थी, पर वह छः दिन की होकर मर गयी।... और ... और मेरे | लायक जो खिदमत हो, कहना। हर वक्त तैयार हैं।... और यह तुम्हारे लिए थोड़े-से भरुण्डे लाया हूँ।
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बिशनसिंह ने भरुण्डों की पोटली लेकर पास खड़े सिपाही के हवाले कर । दी और फजलुद्दीन से पूछा, 'टोबा टेकसिंह कहाँ है?' 'येबा टेकसिंह!' उसने तनिक आश्चर्य से कहा, 'कहाँ है? वहीं है, जहाँ था। बिशनसिंह ने पूछा, 'पाकिस्तान में या हिन्दुस्तान में?' ‘हिन्दुस्तान में -- नहीं-नहीं, पाकिस्तान में।' फजलुद्दीन बौखला-सा गया। बिशनसिंह बड़बड़ाता चला गया, 'ओपड़ दी गड़-गड़ दी एनेक्स दी बेध्याना | दी मुंग दी दाल ऑफ दी पाकिस्तान एण्ड हिन्दुस्तान ऑफ दी दुर फिट्टे मुँह!' । म तबादले की तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं । इधर-से-उधर और उधर-से-इधर आने | वाले पागलों की सूचियाँ पहुँच गयी थी और तबादले की तारीख भी निश्चित हो चुकी थी। सख्त सर्दियाँ थीं। लाहौर के पागलखाने से हिन्दू-सिख पागलों से भरी लारियाँ पुलिस के दस्ते के साथ रवाना हुईं । सम्बन्धित अफसर भी उनके साथ थे। वागाह के बार्डर पर दोनों ओर के सुपरिन्टेन्डेन्ट एक-दूसरे से में मिले और प्रारंभिक कार्रवाई खत्म होने के बाद तबादला शुरू हो गया, जो ।
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