उपनिषत श्री : डॉ उर्मिला श्रीवास्तव | Upanishaat Shri : Dr. Urmila Shrivastava के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : उपनिषत श्री है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Urmila Shrivastava | Urmila Shrivastava की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Urmila Shrivastava | इस पुस्तक का कुल साइज 116 MB है | पुस्तक में कुल 419 पृष्ठ हैं |नीचे उपनिषत श्री का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | उपनिषत श्री पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Uncategorized
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किया है। सत्य का, सत्य के अन्चेष्टा से साक्षात्कार कराया है। यही काटण है कि उपनिषदों के सन्देश देश-काल, व्यक्ति की सीमा से पटे आज भी उतने ही प्रक्रिक और उपयोगी हैं। जितने अपने उद्धव काल में।
स्तुतः वेदों की समष्टि यज्ञपटक है, अग्नि में अटणि तथा हविः की आहुति देगा यज्ञ का भौतिक अथवा साङ्केतिक छप है। सत्-टजस्-तव्यम् से आवृत शुद्धाशुद्र जीवन में, अशुद्ध अंश का त्याग तथा शुद्ध अंश की वृद्धि-यह यज्ञ कर आन्तरिक रहस्य है। उपमा, प्राणमय, गोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय पञ्चकोशों की पूर्व-पूर्व में क्रमशः आहुति देते हुए प्राग्नौ ब्रह्मणा हुतम् को कार्यान्वित करते हुए आत्मपर्पण के माध्यम से पूर्णात्मिा में प्रतिष्ठा-यज्ञ का विशुद्ध छप है। यह चटम आहुति ही पूर्णाहुति है, इस पूर्णाहुति को धारण करने का हरापथ्य लौकिक अथवा अलौकिक अग्नियों में नहीं, चैतन्य अग्नि ही उस दिव्य अमृताहुति को धारण कट सकती है।
उपनिषद ने वेदों के इसी सन्देश को मुखटित कटते हुए घोषणा की थी कि पूर्णता की प्राप्ति हत्य अर्थों में धार्मिक जीवन स्वीकार करने एवं विश्वात्मा का राम्यन्त दृष्टि से साक्षात्कार करने से ही सम्भव है। पूर्णता आल्यन्तट है, धाय सवं यान्त्रिक नीं। मनुष्य को धुले दम पर कट निर्मल नहीं बनाया जा सकता है। क्रियाकलापों के आडन्ट से ओत-प्रोत जीवन निरर्थक है, निसार है। समय यज्ञ मनुष्य के आत्मिक ज्ञान की लक्ष्य सिद्धि को लेकर किये जाते हैं। यह जीवन स्वयं एक यज्ञ है। आत्म-नियत्रण, जुत्ता, उदाता, विनय, अहिंसा और अमृत वाणी-ये उसकी आहुतियाँ हैं।
अवान्तटकल में कृष्ण द्वैपायन ने कृष्ण वासुदेव के माध्यम से कर्ममय तथा ज्ञानमय जीवन का समय स्थापित कटके उपनिषदों के इसी सन्देश को गीता बना दिया था-पर्व कखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते। उपनिषदों की शिक्षाएँ अत्यधिक परिष्कृत और उच्छतटीय होने पर भी केवल अन्तःकक्षीय थीं-गुरु और शिष्य के अध्य-गीता ने उन शिक्षाओं को (भागवत धर्म के प्रभाव में) दीप्ति पूर्ण माधुर्य के साथ व्याख्यायित कटक अन्प्रवेशिनी शक्ति से सम्पन्न कर दिया जियाये ३ सप्रय और सार्वजनीन हो गीता-गेय हो गईं-सर्वोपनिषदो गावः - - - - दुग्धं गीतामृतं महत्। ।
| मानव का अन्तिम लक्ष्य है मोक्ष-स्वयं को पहचानना। उपनिषदों के ऋषियों ने मानव को फुटपाट से घाँध रखने वाली पाशविक वृत्तियों से ऊपर उठ कर निःस्वार्थ निष्ठापूर्ण जीवन को ग्रहण करने का उपदेश दिया है। जो अज्ञानी है, माया-मोह में लिप्त है, मन शक्ति से शून्य है, पवित्र चरण वाला है, वह ब्रह्म को प्राप्त नहीं कर सकता है और संसार में संपटण करता रहता है। इसके विपरीत, ज्ञानी. अननशक्ति सम्पन्न तथा पवित्र चिटण वाला उस पटमतत्व को प्राप्त कर लेता है, जहाँ से पुनर्जन्म यव नहीं। ऐसा मुमुक्षु साधक असत् से उपनिषत्-श्री: