मध्य पूर्व में तेल राजनीती का इतिहास | Madhya Poorv Me Tel Rajniti Ka Itihas

मध्य पूर्व में तेल राजनीती का इतिहास ( 1900 – 1982 ) : डॉ विमल प्रसाद | Madhya Poorv Me Tel Rajniti Ka Itihas : Dr. Vimal Prasad

मध्य पूर्व में तेल राजनीती का इतिहास ( 1900 – 1982 ) : डॉ विमल प्रसाद | Madhya Poorv Me Tel Rajniti Ka Itihas : Dr. Vimal Prasad के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मध्य पूर्व में तेल राजनीती का इतिहास है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Vimal Prasad | Vimal Prasad की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 91 MB है | पुस्तक में कुल 1441 पृष्ठ हैं |नीचे मध्य पूर्व में तेल राजनीती का इतिहास का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मध्य पूर्व में तेल राजनीती का इतिहास पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, world

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पुस्तक का साइज : 91 MB
कुल पृष्ठ : 1441

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आमुख
आधुनिक विश्व-राजनीति के विश्लेषण एवं तैयिक इतिहास के अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि विश्व राजनीति में मध्य-पूर्व (पश्चिमीएशिया) का प्राचीन समय से ही एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। तीन महाद्वीपों को जोड़ने वाला यह हृदय स्थल ; तीन विश्व धर्मों का जनक यह भूखण्ड; अपनी भौगोलिक परिस्थितियों की विचित्रता के कारण हमेशा ही अविस्मरणीय बना रहा। यद्यपि सभ्य दुनिया के कई महत्त्वपूर्ण युद्धों का फैसला इसी क्षेत्र में किया गया, लेकिन स्वयं इस क्षेत्र के भाग्य का बटवारा यूरोपीय राजधानियों में किया जाता रहा । इस प्रकार से प्रारम्भ में अपनी उच्चतम सभ्यता की श्रेणी तक पहुंचने वाला यह भाग बाद में अविकसित और असम्यता के क्षेत्र में गिने जाना लगा था।
| परन्तु 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से मध्य-पूर्व के क्षेत्र की महत्ता पुनः बढ़ने लगी क्योंकि आधुनिक विश्व की सभ्यता और जीवन ‘तेल' (पैट्रोलियम) पर निर्भर होने लगा और इस तेल के प्रचुर भण्डार इस मरुस्थली क्षेत्र में मिलते गये । दोनों विश्व युद्धों ने सह निर्विवाद रूप से सिद्ध कर दिया था कि 'रोल' शान्ति और युद्ध दोनों ही परिस्थितियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है और जिसके अधिकार में ये प्राकृतिक भण्डार हैं, वहीं सर्वशक्तिशाली भी है । अतः मध्य-पूर्व का यह क्षेत्र अपने प्रचुर टोल भण्डारों के कारण एक बार फिर से बड़ी शक्तियों-ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राष्ट्र अमरीका तथा सोवियत संघ की प्रतिस्पर्धा, कूटनीति और ‘शीत युद्ध' का अखाड़ा बन गया है। प्रत्येक विश्व-शक्ति तृतीय विश्व युद्ध की कल्पना करके मध्य-पूर्व के होल भण्डारों पर केवल अपने और अपने मित्र राष्ट्रों का ही नियन्त्रण चाहती है । अतः अन्तर्राष्ट्रीय प्राक्ति-सन्तुलन अधिकांशतः मध्य-पूर्व के तेल भण्डारों और 'पैट्रो-डालर' पर आधारित होता जा रहा है। बड़ा या छोटा, विकसित या अविकसित, साम्यवादी या पूजीवादी प्रत्येक राष्ट्र रोल के लिए चातक बना हुआ है। रोल का इतना महत्त्व बढ़ गया है कि यदि किसी भी राष्ट्र की विदेशी नीति के बारे में समझना है तो इसके लिए उसके तेल प्राप्ति के स्रोतों का अवलोकन करना होगा और आपको उस राष्ट्र की विदेश नीति की रूप-रेखा का अधिकांश चित्र-स्पष्ट हो जायेगा।

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