भक्तिसार समुच्चय | Bhaktisaar Samuchchaya

भक्तिसार समुच्चय | Bhaktisaar Samuchchaya

भक्तिसार समुच्चय | Bhaktisaar Samuchchaya

भक्तिसार समुच्चय | Bhaktisaar Samuchchaya के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भक्तिसार समुच्चय है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Haridas Shastri | Haridas Shastri की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 46.1 MB है | पुस्तक में कुल 102 पृष्ठ हैं |नीचे भक्तिसार समुच्चय का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भक्तिसार समुच्चय पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, music

Name of the Book is : Bhaktisaar Samuchchaya | This Book is written by Haridas Shastri | To Read and Download More Books written by Haridas Shastri in Hindi, Please Click : | The size of this book is 46.1 MB | This Book has 102 Pages | The Download link of the book "Bhaktisaar Samuchchaya" is given above, you can downlaod Bhaktisaar Samuchchaya from the above link for free | Bhaktisaar Samuchchaya is posted under following categories dharm, hindu, music |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 46.1 MB
कुल पृष्ठ : 102

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एक श्रेष्ठ, परप्रकृति से पर सत्त्व रज तम ये तीन प्रकृति के गुण हैं, इससे युक्त होकर इस जग के सृष्टि स्थितिलय रूप कार्य के लिए व्रह्मा हर महेश ये तीन संज्ञा प्राप्त होते हैं। वह पर पुरुष सत्त्व युक्त होकर विष्णु संज्ञक सर्व जीव कल्याणदायक विष्णु रूपी होते हैं, इस रीति से रजोयुक्त सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, तमोयुक्त संहर्ता हर होता है। इसप्रकार सर्व गुणातीत अनादि पर पुरुष जिस प्रकार भक्ति द्वारा लभ्य होते हैं उसका प्रदर्शन के लिए श्रीभगवद् वाक्य द्वारा कहते हैं। जिनमें समस्त भूत हैं और जो सर्वत्र व्याप्त है, वह पुरुष अनन्य भक्ति से ही लक्ष्य है। वह पर पुरुष अनन्या निरपेक्षा प्रेमलक्षणा, एक भक्ति, उससे ही उपलभ्य है। इस प्रकार भक्त चित्त में स्वयं ही प्रकाशित होते हैं, यह वाक्यार्थ है, एक भक्ति से लभ्य होने के कारण सुधीगण सङ्कीर्तन बहुल यज्ञ द्वारा यजन करते हैं इस प्रमाण से सङ्कीतन यज्ञ द्वारा गौर कृष्ण भजनीय कथन से एक वाक्य प्राप्त श्री चैतन्य ही पर पुरुष कहा जाता है, वाक्यार्थ भी उस प्रकार है।

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