केन : कृष्णनन्द गुप्त | Ken : Krishna Nand Gupt के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : केन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Krishna Nand Gupt | Krishna Nand Gupt की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Krishna Nand Gupt | इस पुस्तक का कुल साइज 4.1 MB है | पुस्तक में कुल 111 पृष्ठ हैं |नीचे केन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | केन पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Ken | This Book is written by Krishna Nand Gupt | To Read and Download More Books written by Krishna Nand Gupt in Hindi, Please Click : Krishna Nand Gupt | The size of this book is 4.1 MB | This Book has 111 Pages | The Download link of the book "Ken" is given above, you can downlaod Ken from the above link for free | Ken is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
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धीरज ने कहा- 'चले जाओ। मैं घर में कह
| हरिदास स्नान करके चला गया। धीरज सीढ़ियाँ तय करके ऊपर पहुँचा । नदी-तट पर बैठी हुई बालिका ने एक बार कंधे पर से झाँककर पीछे देखा घर यह लक्ष्य करके कि युवक ने उसे देख लिया है, वह तुरंत मस्तक नत करके कलर्सी माँजने लगी है।
स्वर्ष क्षितिज से बहुत ऊपर चढ़ आया था। कलसी मजकर और मुंह धोकर चालेका अपने छोटे भतीजे के लिये तट पर के रंगीन और श्वेत प्रस्तर-खंड बीन। बैठ गई । इष्ठी समय एक अश्वारोही सैनिक अपने अश्व को पानी पिलाने के उद्देश्य से राजपथ से नीचे उतरकर नदी के किनारे-किनारे चलने लगा। धीरज उसे देखकर सीढ़ी पर ही ठिठक गया था । सैनिक घोड़े को लेकर नदी में उतरा। धीरज अगे बढ़कर वहाँ खड़ा हो गया, जहाँ से वह उतरा था, और एकटक होकर उसे घूरने लगा। । सैनिक ने घोड़े को पानी पिलाया। तदुपरांत वह अपने से थोड़ी दूर पर बैठी बालिका के निकट पहुँचकर बोला-"तुम इसी गाँव में रहती हो ?''
बालिका ने मस्तक ऊपर उठाकर कहा-“हाँ ।”